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- मेरु मंदर पुराण
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मिल जाता है तो वह शीघ्र ही संसार सागर से तिर जाता है। इस प्रकार मेरू व मंदर भगवान विमलनाथ के उपदेश से तथा उनके पवित्र चरण कमलों के प्रभाव से शीघ्र ही तिर गये ॥१४००।
मदुरै नल्लि राम देवन मलइर् शोदरै काविट्ट । तदिर कळ लमरन पिन्नु भरतन माल वानोन ।। विदियिना लच्चुदैकन वीत पीतन् निलांदै।
कदि पदि. यादित्तावन् मेरु नल्लगति वेंदन ॥१४०१॥ अर्थ-ये मेरू मंदर कौन थे? इस संबंध में प्राचार्य संक्षेप में बतलाते हैं:
मेरू नाम का जीव पूर्वभव में मदुरा नाम के ब्राह्मण की स्त्री थी। तदनंतर वह स्त्री मरकर रामदत्ता देवी हो गई अर्थात् सिंहसेन महाराज की पटरानी हो गई। तदनंतर वह आर्यिकां दीक्षा लेकर स्वर्ग में जाकर भास्कर नाम का देव हो गया। वहां से चयकर विजयार्द्ध पर श्रीधरा हो गई। वहां से तपकर के कापिष्ठ स्वर्ग में देव हो गई। तत्पश्चात् वहां से रत्नमाला नाम की स्त्री पर्याय धारण की। तदनंतर तप करके अच्युत नाम के कल्प में देव हुआ। इसके पश्चात् वहां से चयकर वीतभय नाम का बलदेव हुआ। तत्पश्चात् लांतव कल्प में आदित्य देव हुआ। इसके बाद कर्मभूमि में आकर मनुष्य पर्याय धारण कर मेरू नाम होकर तपश्चरण करके मोक्ष प्राप्त कर लिया ।।१४०१॥
वारुणो पूर चंदन वानवन् मंगै वानोन् । येरणि इरद नायुदन् नच्चुदन् विवीडन । नारळल नरगन् वेद नमरण पिन् सयंदनं पुर् ।
ट्रारणि तरणन पैदार मंदरन् शिवगति कोन् ॥१४०२॥ अर्थ यह मंदर नाम का जीव पूर्वभव में वारुणी नाम की ब्राह्मण की स्त्री थी। वह तपश्चरण करके पूर्णचंद नाम का सिंहसेन राजा का छोटा पुत्र होकर जन्म लिया। तदनंतर तपश्चरण करके वह देव हो गया। तदनंतर यशोधरा नाम की स्त्री हुई। पुनः बह तप करके देव गति को प्राप्त किया। वहां से चय कर मध्यलोक में रत्नायुध राजा हमा। वहां से तप करके अच्युत कल्प में देव हमा। वहां से चय कर विभीषण नाम का वासुदेव हमा। वहां से नरक में गया। नरक से आकर श्रीधाम नाम का राजा हुआ। वहां से तप' करके ब्रह्मलोक में जाकर देव हुप्रा । वहां से प्राकर जयंत नाम का राजा हुआ। तदनंतर धरणेंद्र हुआ। इसके पश्चात् मंदर नाम का राजा का पुत्र हुआ । इस प्रकार यह दोनों मेरू और मंदर तप करके मोक्ष को चले गये ।।१४०२॥
इनैयदु वेगुळिई नियलबु माट्रियल। पिनैयदु विनेगळि नियल्बु पट्रियल् ॥ पिनयदु पोरुळिन दियलदु वोटियल् । पिनयदु तिरुवर डियल्बु तानुमे ॥१४०३॥
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