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________________ ५०२ ] मेरु मंदर पुराण बिट्टब पोळवु वैति पोलेळं पुंगवेद । मट्टवर वेदनीत वरिण येट्टि मुनिवरारणार् ॥ १३७६॥ नल्लवांचलन कोद मान माय लोभं तन्नं । • सोल्लिय मोरंइन मूंड्र तानत्तिर् टू बकरुत्तु ॥ पुल्लिदा मुलोगं तन्नं वीळ तंब मूळ्ततिपि । नेनं हर शुद्धि पेट्रा रिश्वत्तेन् तेन्मोग नोते ।। १३८० ॥ अर्थ - तदनंतर संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार प्रकृतियों में से सातवें समय में संज्वलन क्रोध को और माठवें समय में मान को, नवें समय में माया को नाश कर निवृत्तिकरण गुणस्थान को उलांघ करके सूक्ष्ल सपरायिक गुणस्थान का अंतर्मुहूर्त में संज्वलन लोभ कषाय का नाश करके संपूर्ण श्रठाईस मोहनीय कर्म की प्रकृतियों का नाश किया । मोहनीय कर्म की अठाईस प्रकृतियां निम्न प्रकार हैं-क्षपक श्रेणी के प्रारोह में दर्शन मोहनीय की सात प्रकृति । अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में तेरह नाम कर्म की । दर्शनावरणीय कर्म में ३ प्रकृति | चारित्र मोहनीय कर्म की २० प्रकृति । तदनंतर सूक्ष्म सांपरायिक गुणस्थान में संज्वलन लोभ मिलकर २८ प्रकृति होती हैं। इन कर्मों को नाश करके शुद्धात्म पररणति को प्राप्त हुए ।। १३७६ ।। १३८० ।। Jain Education International बिय बिनैक्कु मूल मागु मोगत्तं वोळता । रंबर पडिगं शेंबन् चडतु विट्टदनं योत्ता ॥ बड्रागं सियुड निड्रोर मूळ्त तीट्रिन् । मुन् बिनांगरणत्तु निदै पसले कन् मुरिय चंड्रार् ॥१३८१ ॥ अर्थ – तत्पश्चात् मेरू और मंदर दोनों मुनिराज २८ कर्म प्रकृतियों को जीत कर सत्परिणाम को प्राप्त कर एकत्व वितर्क, अवीचार नाम के द्वितीय शुक्ल व्यान को प्राप्त किया। क्षीण कषाय नाम के गुणस्थान में अन्तर्मुहूर्त में दो समय में निद्रा प्रचला ऐसे दो प्रकृतियों को नाश किया ।। १३८१ ।। उरु करणं कडंद पोवु वोरुनाल्वर् कण मर कूडि । प्रोरगिर वेळ तन्निर् पोदिया वरण मैंदुम् ।। मरुवि निड्र दितं कालत्तंदरा पेंदानंदुस् । तरगि इरेऴव रंवक्कत्तिले तीरं वा रं ।। १३८२ ।। अर्थ - क्षीणकषाय नाम के गुरणस्थान में अंत में एक समय शेष रहने पर चक्षुदर्श नावरणीय, प्रचक्षुदर्शनावरणीय, श्रवधिदर्शनावरणीय, केवलदर्शनावरणीय ऐसे चार, मतिज्ञानवरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय अवधिज्ञानावरणीय, मन:पर्यय ज्ञानावरणीय, केवलज्ञाना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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