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________________ ५०.] .मेरु मंदर पुराण मूरि मूवुलगं तन्न यदलु मागु माट्रल । वीर्यमागु मेंड्रिव् विदि युळि निबिट्टारे ॥१३७२॥ अर्थ-तदनंतर प्रात्मा के साथ लमे हुए आठ प्रकार के द्रव्य कर्म का नाश होते ही रूप, शब्द, स्पर्श रस, गंध इत्यादि का नाश होकर ज्ञान से जानने योग्य अगुरुलघुत्व गुण को प्राप्त कर तीन लोक के अग्रभाग में रहने वाले तनुवात में अपना प्रात्मा चलायमान न होते हुए कब जाकर विराजमान होगा-ऐसी भावना निरंतर भाते थे ।।१३७२।। उरुवमो मेलियु मूरु नाम सुवयु मिडाय। तेरिवर नुन्मत्तागि नोर्पमुं शिरप्पु मिड्राय । मरविय विनेगळटै मायं दवक्कनत्तु सेंड । तिरिवर उलगत्तुच्चि निट्टलु सिदित्तारे ॥१३७३॥ अर्थ-गुण गुणी से युक्त जीवादि अनंत द्रव्यगुण कहलाने वाले द्रव्य सामान्य और विशेष से तथा द्रव्याथिक और पर्यायाथिक इस तरह दो प्रकार से है, और विशेष से द्रव्याथिक पदार्थ के तन्मय से अस्तित्व है। पर्याय कहने से अनित्य है। स्याद्वाद के सप्तभंगीनय से नाम स्थापना द्रव्य भावों से उत्पाद व्यय सहित है। द्रव्य पात्मा गुण है इस प्रकार दोनों गुणी मात्म-भावना के बल से अपनी २ आत्मा हमेशा शाश्वत है। ज्ञानदर्शन से युक्त है। शेष जो द्रव्य हैं, वे आत्मा से भिन्न तथा अन्यत्व है। इससे प्रात्मा-पर वस्तु से इस प्रकार भिन्न है । उनकी आत्मा अप्रमत्तगुणस्थान नाम के क्षपक श्रेणी को प्राप्त हुई ॥१३७३॥ .. गुणगुरिण निलम युं गुरणंग निद्रलु । मन मुड मट्र वर् तत्तं सिदिया। वनवरं पमादं विट्ट पमत्तरा। इनला सेशिमेलेरि नागळे ॥१३७४॥ विनंगळेळ विरगिनाल वीळं व वक्करण । मुनिवर पुवारिण नन मुनिवराइनार ॥ विनयला निल तळरं दिट हुदिधिग। तनै यडेविट्ट वाल्वगै इनार पिन्नं ॥१३७५॥ अर्थ-अप्रमत्त गुणस्थान को प्राप्त होने के बाद मिथ्यात्व, सम्यक मिथ्यात्व, सम्यकप्रकृति, अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार दर्शन मोहनीय इस प्रकार सात प्रकृतियों का नाश किया। तदनंतर ये दोनों मुनिराज अपूर्वकरण नामके आठवें गुणस्थान को प्राप्त हुए। बंध, सत्व, उदय, उदीरणा, इन चार प्रकार के उत्पन्न होने वाले कर्मों की निर्जरा करने लगे। भिन्न २ होते हुए भी अपने अन्दर ही वृद्धि होने वाले पृथक्त्व, वितर्कत्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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