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________________ मेव मंबर पुराण [ ४६ ... - ~ .- -- -- -- ---- - अर्थ-स्त्रियों की स्तुति करना, प्रेम से देखना, उनकी प्रशंसा करना, रुचिकर प्रहार लेते समय प्रेम रखना, स्त्रीसहवास करना, उनसे हास्यादि करना मादि से रहित उत्तम ब्रह्मचर्य को पालन करने वाले थे ॥१३६१।। मावर पुगळवल पातल मद्रव रट्ट बैंड्रा । लावरी तुंडल पुक्क बव्वगत्तुरंद लबल ।। मेवम केटल मेवि शिरितिडलविळे नोकल । येद मिडि पटि नीगि इलंगु मुळ्ळत्त राणार ॥१३६२॥ अर्थ-चर्या को जाते समय चार हाथ भूमि को देखकर जीवों को बाधा न हो, वे ईर्यापथ शुद्धि से मंद २ गति द्वारा गमन करने वाले थे। संपूर्ण जीवों से दमा के भाव के साथ बात करते थे। एषणा समिति पूर्वक एक बार प्रती श्रावक के घर जाकर शुद्ध माहार लेने वाले थे। मलमूत्र को निजंतु स्थान में त्याग कर ब्युत्सर्ग समिति के पालन करने वाले थे, और वस्तु को रखते तथा उठाते समय यत्नाचार पूर्वक रखना आदि पादान निक्षेप सिमति का पालन करने वाले थे। इस प्रकार पांचों समिति के पालन करने वाले थे ॥१३६२॥ मुन्नगत्तळवु नोकि मुंबु पिन पिरियच्चेल्ला। रिन् सोलुं पिरर तमक्कु मिदत्तन पंडिचोला । रंबु नोतुहरै योंबि यळव मैंदुब राकुं। तुंवर कोडल वैत्तल मलगेळे तुरत्तल शैयार ॥१३६३॥ अर्थ-पर्यकासन, पद्मासन, खङ्गासन, वीरासन, गोदूहन आदि से सामायिक तथा ध्यान करना । चर्या मार्ग से आहारं के लिये जाना। सोते समय हलन चलन नहीं करना, जीव को बाधा न हो इसलिये हाथ पैर नहीं पसारना । संकोच करके रखना. इस तरह कायगुप्ति का पालन करते थे। भव्य जीवों को धर्मोपदेश के सिवाय मौन धारण करने वाले थे। इस प्रकार वचन गुप्ति पालन करते थे। रत्नत्रय वृद्धि करने योग्य श्रावक श्राविका के हाथ से शुद्ध आहार लेते थे। मन का सदेव एकाग्र चित्त रख कर मौनवृत्ति के पालन करने वाले थे ।।१३६३॥ इरुत्तले किउत्तल निट्र नियंगुवल मुडक्कल मोटल् । तिरुत्ति यव्वाकु तीम शिरदिडा वोलक मोवि ॥ युरेत्तुहर कुरुदि मगिमोंवुव कोप्पिर कोंडुम् । परिक्कद पावे मारे पदर तुरंविट्टारे ॥१३६४॥ अर्थ-सुख दुख मादि में समान भाव रखने वाले, तीन लोक के नाथ प्रहंत भगवान का स्मरण करने वाले, अहंत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार करने वाले, कर्मेंद्रिय से भाने वाले दोषों का प्रायश्चित्त लेने वाले थे। अपने शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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