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________________ मेरु मंदर पुराण [ ४६३ -- - -- -- -- --- - -- - - --- ___ अर्थ-पीछे कहे हुए दुर्गुणों को त्यागना, प्रहंत भगवान के स्वरूप प्राचार्य, उपाध्याय को नमस्कार करना, मृनि की चर्या के अनुसार मार्ग पर द्वारापेक्षण करना, तत्पश्चात् भोजन करना, अहिंसामयी भोजन करना, शरीर में निर्ममत्व भाव होना यह सब उच्च गोत्र के कारण हैं ॥१३४६।। कोलय कोबित्तु शैया कोडइन इड विलक्का । विले येनिनु वंदु नंडिदुळि कायं दु नेंजर ॥ पुलैसुत्तेन कळ ळ मेविपिरन् शेल्वम् पोरादु वोव्व । वले शय वंदराय मैंदुम वंदडयु मेंडान् ॥१३४७॥ अर्थ-आत्मा रौद्रध्यान में तत्पर होकर अनेक प्रकार के जीव हिंसा को करना, दूसरे को दान देने वाले के अंतराय कम डालना, दान न देने वाले को देखकर तिरस्कार करना तथा कषाय करना , मद्य, मांस, मधु का सेवन करना , दूसरे की वस्तु को जबरदस्ती से छोनना, इनसे तीव्र अंतराय कर्म का बध होता है ।।१३४७।। सोन्न कारणंगळ भाव योगत्तिल पडिहर सोल्लि । नुन्नलां पडियवल्ल रैक्किनुं सोगिळादा ॥ वेन्नमुम् नार्कनत्तुळ यावरु मिरैजि येत्ति । तुन्निय विनय वेल्लत्तोडंगिनार मलर मंड्रे ॥१३४८॥ अर्थ-पिछले कहे हुए दुर्गुण, मन, वचन, काय से प्रात्म-प्रदेश परिस्पंद में प्रवेश होकर आत्मा को अनेक कुगतियों में भ्रमण के कारण होते हैं। उस पाप कर्म के होने वाले दुख को इस जिह्वा द्वारा कहना असाध्य है । ऐसे समझ कर केवलो भगवान ने उन मंदिर और मेरू दोनों गणधरों को समझाया। इसको सुनकर समवसरण की बारह सभागों के सभी भव्य जीवों ने उठकर भगवान को नमस्कार किया और वहां स्थित अन्य केवलियों को नमस्कार किया, तत्पश्चात् सभी गणधरों को नमस्कार किया। तदनंतर ये लोग सम्यक. दृष्टि होकर कर्म निर्जरा के लिये प्रयत्नशील बन गये ॥१३४८।। प्रायुवं करण{ पोरियु मग्गति । वायुq केडुद लाल मरण मट्वे ।। पोळि पेरुद लाम् पिरवि पोमिड । तेयु मोंडि रंडु मूंड्रांगणंगळे ॥१३४६॥ अर्थ-उस गति में स्थित होने वाले प्रायुष, मन, वचन, काय, इन्द्रिय, श्वास, उच्छवास आदि दस प्राणों के नाश होने को मरण कहते हैं। पुनः कार्मारणकाय सहित दस प्राणों के धारण करने को जन्म कहते हैं। एक शरीर को छोडकर दूसरे शरीर को धारण करने को समय अथवा विग्रहगति कहते हैं ॥१३४६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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