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मेरु मंदर पुराण
युन्मं तानिन्मं युन्मे इन्मयान् । तिनिय तन्नोडवाचियं सेप्पिडिर् ॥ पण भंगंगळेळ, पुरुट्क्कििल्लये । लुनमैदान् पोस्ट किल्ले यॅड्रोदि नाय् ।। १३०४ ।।
अर्थ – स्याद् अस्ति, स्याद्नास्ति स्याद् ग्रस्ति नास्ति, स्याद् अवक्तव्य, स्याद् अस्ति श्रवक्तव्य, स्याद् नास्ति श्रवक्तव्य, स्याद् अस्ति नास्ति श्रवक्तव्य इस प्रकार सप्तभंग है । इन सातों के बिना द्रव्यादि वस्तु की सिद्धि नहीं हो सकती। ऐसे सप्तभंगी नय के व्याख्यान करने वाले माप ही हैं ।। १३०४ । ।
सुद्र नी यव
तुंब नीकलार् ।
पट्ट. नीइले पटुवं तीर्थलान् ॥
मुद्र नीयुनरं दाय् मूवुलगत्तिन् ।
पेट्रि तन्नं नी यावर्कस् पेसलाल ।।१३०५ ।।
अर्थ - प्रापके चरण में प्राए हुए भव्यजीवों का दुख नाश करने के लिए आप बंधु के समान हैं। मोह से उत्पन्न हुए रागद्वेष आदि परीषहों का नाश करने वाले चराचर वस्तु तथा सम्पूर्ण पदार्थों के गणधरादि के समान आप हितोपदेशी हैं ।। १३०५ ।।
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roa नीयग दिक्क लिरुत्त लालू ।
उरुव नी युडंबोड सेन्नाळेलाम् ॥
मरुवि दान वर वाळूति पिव्वाट्ट नार 1 पोरविला पुणियत्तोडुं पोइ नार् ।। १३०६ ।।
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अर्थ - सदैव के लिए जन्म मरण से रहित पुनर्जन्म न होने के कारण आप अजन्मा हैं । प्ररूपी हैं । मोक्ष प्राप्त करने वाले हैं। आप द्वारा सम्पूर्ण कर्मों का नाश करने के कारण लोकांतिक तथा चतुरिंगकायदेव श्राकर प्रकृत्रिम चैत्यालयों में प्राकर आपकी स्तुति करके पुण्यबंध कर लेते हैं ।। १३०६ ॥
इमेय वर पोल विच्चिरप्पं शेदव । - रिमे यवरलगत्तं यदि इंगुवन् ॥
विमं यवर् शेयं शिरष्पेंदु मंदि पो ।
इमं यवर् वोळच्चित्ति पगत्तिरुपरे ।। १३०७ ॥
अर्थ - जैसे नंदीश्वर द्वीप की देवलोग पूजा करते हैं, उसी पूजा को मनुष्य लोग यहां पूजा करने से देवलोक को प्राप्त होते हैं। वहां से चयकर कर्मभूमि में आकर अच्छे कुल
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