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मेरु मंदर पुराण
[ ४७७ कन्ग ळायिर् मुडयव चक्करन् घातिय कडिदोर् तम् । पन्बला मुडनिरुंद वप्पडिमत्तै पलमुरै पारतारा ॥ वनगै या ट्रेळु दिरेवन् द्रन चरणत वाळ तोडु मरु चित्तान् । पेंगळिर पिरप्पिल लविदिरारिण यिप्येरुन शिरप्पुडन् शंदाळ् ॥१२६७॥
अर्थ-देवेंद्र अपने एक हजार नेत्रों को बनाकर भगवान को देखता हुआ भी तृप्त नहीं हुआ, और बार २ साष्टांग नमस्कार किया। तत्पश्चात् अष्ट द्रव्य से भगवान की पूजा अर्चा की। उनकी शची इन्द्राणी पुनः गर्भ में न माने के लिये स्त्री लिङ्ग छेदकर मोक्ष जाने की अभिलाषा वाली ने अपने इन्द्र सहित भक्तिभाव से पूजा करी ॥१२६७।।
गंदमं कडि मालगुं शुन्नमुं कारगिलिडं दूप । नंदइन् दलवारिम् दीपमु नल पल सरुवालु। मंद मिल्ल नल्ल वगैइन नंडपल तोडंगि निरुचित्तार । चंदिरादि कोळ मुद्दे वर मिदिरर् सोदमन् मोदलानोर् ॥१२९८॥
अर्थ-तत्पश्चात् भवनवासी, ब्यंतरदेव तथा ज्योतिषी देव, सौधर्म इन्द्र आदि कल्पवासी देव सभी ने मिलकर भक्ति पूर्वक अद्भुत नृत्य किया। तदनंतर सुगंध, चंदन, धूप तथा पुष्पों से नंदा नामकी बावडी के जल से, नैवेद्य से, दीप से भगवान की पूजा की ।।१२९८॥
मट विदिरर् तम्मोडुं पडिदिरर् मै मै कन् मुम्मै कन् । नुद, नर् शिरप्पुळे कलं तांगिनर् देवियर् तम्मोंडु ॥ पेट्रियार् पिरप्परुक्कु नचिरप्पिनै शंदु चक्कर पिन्न । कुट मिल्ल नल्लरि वुडै इरेवन् हुन् गुणतुदि सोल लुट्रान् ॥१२६६॥
अर्थ-इन्द्र और प्रतिइन्द्रों ने इन कार्यों में भाग लेने के लिये मन, वचन, काय से अपनी २ पूजा योग्य वस्तुओं को थाली में सजाकर अपनी २ देवाङ्गनामों के साथ वहां पाये और सौधर्म इन्द्र ने संसार का नाश करने वाली नंदीश्वर की पूजा करने के पश्चात् स्तुति प्रारंभ की ॥१२९६।।
अरुग नी पूसक्करुग नाय । पेरियें यायि नै पेनस इन्मया ॥ लोरुव नायिनै योप्प व रिन्म यार । हरुव मायिनै तोट्र मदिन मयार् ॥१३००॥
अर्थ--भव्यजीवों के द्वारा पूजा करने योग्य देव पाप ही हैं। इसलिए माप महत पद को प्राप्त हुए हैं। आपके स्त्रियों को इच्छा न होने के कारण मापने महान पद को प्राप्त
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