________________
मेर मंदर पुराण
[ ४७३
-
---
--
-
-
-
परंद वरंबयर पाडलोडाड। निरंद वीयाळ कुळल् किन्नर गीतं ॥ तुरंगमु मावोडु मानमु मेरि ।
विरुविय वन्न मरिणदु वियंदार ॥१२८१॥ अर्थ-देवियों के संगीत और नृत्यादि सदैव होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त किन्नर, किंपुरुष देव वाद्य करते हुए अपने २ वाहनों पर चढकर अलंकारों से सजधज कर समवसरण में पाते हैं ।।१२८१॥
विक्किरियै पल वेटु मडुत्तव । रक्किरियै कन्-नळित्तवर तम्मोडु ।। पोक्क मुरत्तु नडित्तुडने शिलर् ।
नक्कनर तक्कवर गाण मुळिवे ॥१२८२॥ अर्थ-देवलोग वहां पाठ प्रकार की ऋद्धियों के बल से परस्पर में हास्य विनोद नृत्य आदि करते थे ।।१२८२।।
वंविगळ वंदनै शैदिर वन पुग। ळंद मिलादन कॉडडि ताळ्द नर् ।। कंदिर मोदिय काळ पदागे इन् ।
वंदनर ताम पल रागिय वानोर् ॥१२८३॥ अर्थ-मंगलगीत, स्तुतिपाठ आदि अनेक प्रकार के स्तोत्र आदि मंगलमयी गीत प्रादि करके भक्ति के साथ भगवान की स्तुति करके चरणकमलों में नमस्कार किया। अनेक देव ध्वजामों को पकडकर वाद्यों सहित वहां आ गये ॥१२८३॥
येळुच्चि मुळावोलि पेंगु मियेव । पळिच्चि वेळुद नर् पन्नवर कौन ॥ वळक्किनिल वंदुलग नडुमै मै इत् । तोळिर किर शोदमनेवलि नाले ॥१२८४॥
अर्थ-देवों के भागमन के समय उनके द्वारा बजाए जाने वाले वाद्यों के शब्द पारों मोर फैले हुए थे। देवों ने वाद्यों के साथ परंपरा के अनुसार वहां आकर नंदीश्वर द्वीप की पूजा की ॥१२८४॥
कत्तिगै पंगुनि याडिय कासरु । सुक्किल पक्क नल्लट्टमि तनिल् ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org