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मेरु मंदर पुराण पर्वत हैं । चारों ओर रहने वाले रतिकर पर्वत बत्तीस हैं । उन सभी बावन पर्वतों पर बावन चैत्यालय, अकृत्रिम एक सौ पाठ, एक सौ आठ जिन बिम्बों से विभूषित हैं ॥१२६४।।
प्रायत मैंबदिर ट्रिरट्टि योजने। यायदंकाल कुरैदल दोकमा । माय तम् तन्नर यगल माइलन ।
वाइन मूंड डंय मुन् मंडबंगळाम् ॥१२६५॥ अर्थ-उन चैत्यालयों की लंबाई सो योजन है। उनकी ऊंचाई पिचहत्तर योजन है तथा चौडाई भी पचास योजन है। इस प्रकार विस्तार वाले चैत्यालयों में वेदियां हैं। वे तीन द्वारों से युक्त हैं। उसके आगे मंडप है। गंधकुटी का प्रथम मंडप पूर्व दिशा में है। उस मंडप को पीठिका मंडप कहते हैं ।।१२६५।।।
मालयं शालंगळ वास मार्दएँ । शालबुं ताळं दुळ वासलिबुडे । पालिग मुदल परिचदेंग नूडेंटु ।
माल वेयं दन मलिदिरंदवे ॥१२६६॥ अर्थ-उस गंधकुटी मंडप के तीनों द्वारों पर फूलों के हार लटके हुए हैं। उनमें खिडकियां हैं। उस मंडप के चारों ओर एक सौ पाठ मंगल द्रव्य हैं , और भिन्न-भिन्न उपकरण हैं ।।१२६६।।
प्रालयत्तळवदा यमैदु कोयिन् मुन्। पालिरंदन पल्लवादिया । माडलं पाडलु ममरंदु कान्वव ।
रुडु शेंड्रन वल बुळक्कलत्तवे ॥१२६७॥ अर्थ-इन अकृत्रिम चैत्यालय के पूर्व भाग में अनेक प्रकार की नाटय-शालाएं तथा वाद्यमंडप हैं , जिनमें नृत्य संगीत होते हैं ।।१२६७॥
इजिगळं पोना लियई गोपुर । मुन्सोन वळविनान् मुडिद माडिरी ॥ येजोलार मुगमेन विरंदवत्तोडु।
वंजिमेगल यन वंदु शूळ्दवे ॥१२६८॥ अर्थ-उस मंदिर के चारों मोर पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण कोट हैं जिनके बीच में गोपुर हैं। वे देखने में प्रत्यंत सुंदर प्रतीत होते हैं ॥१२६८।।
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