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________________ मेरु मंदर पुरारण उलगिनु फिर व ना लयंगळा लिम्मु । उलगिनु कि मै कोंडोंगु गिडूदे ।। १२५६ ।। अर्थ - यह नंदश्वर द्वीप श्रनेक प्रकार की सुन्दर लताओं से अलंकृत है । प्रौर तीन लोक के नाथ कहलाने वाले प्रहंत भगवान के चैत्यालय वहां प्रत्यत श्रेष्ठ प्रकाशमान है। ।। १२५६ ।। पन् चिरै किडंद सोर्पा मारुडन् । बिन् शिरं कळमेन विट्टु वीरने || वन् शिरप्पोड वंदडेद वानवर् । कन् शिरं पडुवदु कामर् भूमि यात् ।। ११५७ ॥ लोक छोडकर प्रति सुन्दर प्रष्ट द्रव्य पूजा सामग्री के थाल भक्ति के साथ पूजा करते हैं, और वहीं निवास करते हैं ।। १२५७ ।। Jain Education International अर्थ-संगीत तथा नृत्य करने वाली देवाङ्गनानों के साथ वहां के देव अपना देवहाथ में लेकर नंदीश्वर द्वीप अंजन मलंग नान्गागु मांगवन् । मंजिल मादिशै नडुव निड्रन || वंजन मूलमा यगंड्र यरं वन । वेंजिलापिरं पुगै नांगो डंवदे ।। ११५८ ।। अर्थ -- उस दोषरहित नंदीश्वर द्वीप की भूमि के मध्य में चारों दिशाओं में प्रर्थात् पूर्व, पच्छिम, उत्तर व दक्षिण इनमें एक-एक अन्जनगिरि पर्वत है । कुल मिलाकर चार हैं । अन्जनगिरि पर्वत चौरासी योजन उत्सेध वाले हैं । एक हजार योजन का अवगाह है और चौरासी हज़ार योजन का विस्तार समवृत्त है ।। ११५८ ।। मद्रिद मलं इन् मादिविकन् वाविगळ् । पेट्रियार, किडंदन पेरिय शालवु ॥ मुद्र नीर् शूळ्द लार ट्रदिभुगंगळेन् । टूटू पेर मलै कळतडत्ति लुळ्ळवे ।। १२५ ।। [ ४६७ अर्थ - यहां तक कहे हुए अन्जनगिरि पर्वत के चारों दिशाओं में चार बावडियां हैं ।। १२५ ।। श्रारं पुगे पत्ते यगडू यरं दन् । वाय् मैया नीरिन् वरंगळ वाविहन् ।। शूळन् तान् किडंद नाल वनंगडं पेय । रेळिलं शंबगं तेमाव सोममे ॥ १२६० ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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