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________________ मेह मंदर पुराण [ ४६१ अर्थ-यह अवसर्पिणी काल दस कोडाकोडी सांगर का होता है। उसमें चार कोडाकोडी सुषमासुषमा पहला काल है। तीनं कोडाकोडी सागर का दूसरा सुषमा काल है। दो कोडाकोडी सागर का तीसरा सूषमा दुषमा काल है। बियालीस हजार वर्ष कम एक कोडाकोडी सागर का चौथा दुषमा सुषमा काल होता है। यह चौथा काल अनवस्थित कर्म भूमि है . और कम से कम होते २ इस काल में पांचसो धनुष्य उत्सेध वाले मनुष्य होते हैं। इनकी प्रायु एक कोटि पूर्व की उत्कृष्ट होती है। इनका शरीर पांच वर्णका होता है। ये महान पराक्रमी व बलशाली होते हैं। प्रतिदिन पाहार करते हैं। अनेक प्रकार के भोगोपभोगों को भोगने वाले, धर्म में अनुरक्त, प्रेसठ शलाका पुरुष इस काल में होते हैं ।।१२३२।। करुम, भोगमुमिरुमै यु मुडन् । मरिय मुन्निगंळ ळ भरत रेवत ॥ मिरुमैय मुदल मुक्कालम् भोगत्तिन् । मरुविय करमत्तं मरे मूंड मे ॥१२३३॥ अर्थ-पहले कहे हुए सात भूमि में भरत व ऐरावत क्षेत्रों में कई दिनों तक भोगभूमि रहती है अर्थात् सुषमा सुषमा, सुषमा, सुषमा दुःषमा इन तीनों कालों में भोगभूमि की रचना रहती है और शेष तीनों कालों में कर्मभूमि को रचना होतो है ।।१२३३।। नम्न युट् टीम युट् टीमै नन्मयुट् । पन्नलं पिरमरं परम तीर्थ ॥ मन्नर पलवरं वासु देवरं। तन्नुरु पर्ग वरु शमरर तामुमा ॥१२३४॥ अर्थ-अवसर्पिणी के तीसरे काल के अंत में तथा चौथे काल के प्रारंभ में ब्रह्मार्थी (प्रात्मार्थी) ऐसे तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रति वासुदेव, चमराधीश मादि सामान्य राजा उत्पन्न होते हैं ॥१२३४।। उत्तर दिक्करण कुरवमुत्तमं । मद्दम मरिवरुडंमि रम्मय ॥ मत्तग मैवप मैरणि य मिवै। नित्तमाय भोगंग निड़ भूमिये ॥१२३५॥ अर्थ-उत्तर कुरुक्षेत्र व दक्षिण कुरुक्षेत्र ऐसे ये दो क्षेत्र हैं। ये दोनों उत्तम भोग भूमि है। हरिक्षेत्र, रम्यकक्षेत्र, ये दोनों मध्यम भोगभूमि है। तथा हेमवत क्षेत्र, हैरण्यवत क्षेत्र ये दोनों जघन्य भोगभूमि है । यह सदैव भोगभूमि में अवस्थित हो रहते हैं ॥१२३५॥ मूहि रंगोरु पल्ल मुरैयु ळायुग । मांड विकार मार नाळिरन् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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