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अर्थ
मेरा मंदर पुराण
डोबिना कुरं पडा बुरंबु ळू णिवे । यादियां मादव रिद्धि वण्णवे ।। १२०६ ॥
- वह सप्तऋद्धियां निम्न प्रकार से हैं:
बुद्धिऋद्धि छह प्रकार की, औषधऋद्धि पांच प्रकार की, तपऋद्धि चार प्रकार की रसऋद्धि चार प्रकार की, बलॠद्धि तीन प्रकार की, अक्षीण, ऋद्धि दो प्रकार की, विक्रिया दि माठ प्रकार की ।। १२०६ ॥
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तुवर, पर्स नानुगोड तोड व पत्तुमा ।
सुवपुं नीरा कळिई युळ्ळस तुयमा ॥
तनत्तवर, पुरपत्तु मासु तन्नषु ।
मुवत्तल काय विलामया लोरुवि नार्गळे ॥। १२०७ ।।
अर्थ- कोष, मान, माया, लोभ इन चार कषायों से युक्त, मिथ्यात्व, नपुंसक बेद, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा इन चौदह प्रकार के परिग्रहों को अभ्यंतर (वैराग्य रूपी पानी से मनःपूर्वक शुद्ध तप का आचरण करते हुए तथा बाह्य परिग्रह जो क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य सुवर्ण धन, धान्य, दास, दासी, कुप्य, भांड इन बाह्य १० परिग्रहों को त्यागकर निष्परिग्रही बन गये ।। १२०७॥
वोळुक्क नीर कुळित्तड्डु तंबरति नै । वळुकिला मादवच्चां मट्टिया || विळुग्गुरण मरिण मैनि सेति नार ।
तोळिर ट्रोर्ड शील मा माले शूडिनार ॥१२०८ ।।
अर्थ – सम्यक् चारित्र रूपी जल से स्नानकर प्रकाश रूपी भ्रम्बर धारण करके महातप रूपी सुगंध चंदन, सम्यक्ज्ञान रूपी गुणाभरण को धारण किया । तत्पश्चात् शीलाबार को धारण किया || १२०८ ||
विदि मनर, तर्म बेल बंद केवलत् ।
तदि पदि तनक्किळ वरस राग नर ॥
सुदमलि केवल पट्ट् सुडिनार ।
विदियिना लिरं वने वंदिरंजिनार ।। १२०६॥
अर्थ-कर्म रूपी वैरी को जीतकर केवलज्ञान को प्राप्त हुए भगवंतों की युवराज पदवी धारण करने के समान ही वे हो गये अर्थात् वे दोनों मुनि श्रुतकेवली होकर भगवान के पास प्राकर उन्होंने नमस्कार किया || १२०६ ॥
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