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मेर मंदर पुराण
[ ४४६ बोरु मोळिय पदिनेट्टा युलगरीय वियंवियदु मोळि कोन् मुंडिर् । ट्रिरु मरुवाय तिगळ गिड़ तिरुमूर्ती यदनळगुं देव निवान् ।। मरुवि नर्कु मल्ल वर्षा मोत्तिरुदुम प्रडेदु वधु वातननगुं। पेरुमयमु.वतिशयमु पिरारिग ये मूवलगोर पिरा नागिड़ाय ॥११६१॥
अर्थ-हे भगवन् ! आपकी दिव्यध्वनि एक प्रकार होने पर भी सात सौ महाभाषा और अठारह सौ क्षुल्लक लघुभाषा में परिणत होकर इस लोक में रहने वाले जीवों को प्राप आपकी भाषा में समझ लेते हैं। मन ज्योति, काय ज्योति, वाग्ज्योति से युक्त एक हजार आठ लक्षण को प्राप्त. परमौदारिक दिव्य शरीर को प्राप्त हुये हे भगवन् ! प्रापके पास आये हुए भव्य जीवों पर और तुम्हारे पास न आने वाले मिथ्यादृष्टि जीवों पर दोनों पर समान भाव रखते हैं । अपने पास आये हुए भव्य जीवों को उपदेश देने की शक्ति स्वभाव से रखते हैं। इसलिये पाप साक्षात् हितोपदेशी हैं । सम्पूर्ण राग नष्ट होने के कारण आप पूर्ण वीतरागी हैं । सम्पूर्ण चराचर वस्तु एक साथ जानने के कारण हो आप सर्वज्ञ हैं। यह सभी अतिशय कर्मक्षय होते ही स्वभाव से प्राप्त होते हैं । इसलिये आप इस लोक में रहने वाले समस्त जीवों के स्वामी कहलाते हैं ।।११६१॥
विलंगरसन वलिविलाक्कि वेर् पोळिदु विमल माय वेळिदा युन्मे । विलंगु पोरि यायिरत्तोट्टिींव ळगारं नविळनाट मियल्वाइन् सोर् ॥ पुलं तनक्किन्नमुदागि वज्जिर पूण शरिंदानि येरैद यापा। इलंगु वटि वुडय तिरु मूर्तीयल पतिशय नेम्मिरैव नीये ॥११९२॥
अर्थ-सिंह इतना पराक्रमी व क्रूर होने पर भी अपना वैरभाव छोडकर आप को शरण लेकर हाजिर रहता है। आपके शरीर में रजोमल के प्रभाव से आपके शरीर में दूध के समान रक्त रहता है । और आपके शरीर में एक हजार पाठ लक्षण होकर उपमातीत ऐसे अतिशय स्वभाव से होते हैं। इसकी भक्ति से श्रीदेवी आदि सदैव सेवा करने में तत्पर रहती है । आप सभी समचतुरस्त्र संस्थान को प्राप्त होकर आपका शरीर वज्रवृषभ नाराच संहनन वाला है । इस प्रकार अनुपम गुणों को प्राप्त हुए, हे हमारे स्वामी ! । ११६२।।
शामै पार्शयिमै पोळि, चदुमुगमाय मेंयिरुगिरुवम् मळविर केट । काय मिश युलवि नल कल केल्ला मिरवनु माय करुम केटि। नोचन नानूरगत्ति नुइर कळिव पार्शकळ ब सरुक नींग । तेशि नोडु तिळेत्तिरुंद तिरुमूर्ति यतिराय नेम शेल्व नोये ॥११९३॥
अर्थ-छाया रहितत्व, निर्मुक्तित्व, निनिमेषत्व चतुगननत्व को प्राप्त होकर समान नख केशत्व प्राप्त होकर इस धरती के ऊपर गमन न करते हुए प्राकाश में चलने वाले आप सर्व विद्येश्वरत्व को प्राप्त करने वाले हैं । आप जहां विराजते हैं वहां चारों तरफ चार योजन
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