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मेह मंदर पुराण
मोचन मंड नर यगंड दोंगिय । दोचने नांगुमेर कोश मैंदु कोळ ॥ माशिला पोन्मरिण पत्ति रेट्टिना।
लाशे पोर परंद बिल्ल वयवत्तदा ॥११३२॥ अर्थ-उसके मध्य में रहने वाला श्री निलय चौदह कोस विस्तार वाला है। उसका उत्सेध चार योजन पांच कोस है और वह अत्यन्त सुन्दर रत्नों से निर्मित किया गया है।
॥११३२॥ तलंदन मेर् शगवि कन् मूंड. तम्मिस । इलंगु पट्टिगैयु में नूरु विर्कळे ॥ विलगं कंड.यरं दन वेरु वेळि।
मलर दु विर् पयिंड. वज्जिर मयंगळं ॥११३३॥ पर्थ-चौदह कोस चौडाई ऐसी भूमि के ऊपर तीन जगती है । वह एक के ऊपर एक है ऐसे कम से है। वे जगती एक से एक बढकर पांच धनुष विशाल है । और यथा योग्य उत्सेध वाली होकर वज और रत्नों की किरणों से. प्रकाशमान होती है ॥११३३॥
मार बळ वयरं द पोन वरंडगत्तिन् मेर । कानुगं शेगदि इन् कवलि कट किडे ॥ पार विर् पत्तिरं कूडस कोटग ।
नोर्म यार हुनुमुप्पत्ति रट्टि नीडवे ॥११३४॥ अर्थ-उस जगती का स्थल मनुष्य के हृदय के प्रमाण है । और वहां एक धनुष का बीच में अंतर छोडकर मंडप है। दस धनुष को छोडकर राजमहल के भवन एक-एक धनुष के अन्तर से छोटे २ घर लोगों के बैठने के लिये बनाये हैं। वे साठ धनुष के अन्तर से हैं ॥११३४।।
तलमिरंडि वट्रिन् वायदल कावला। निलय मंतराळत्तु निड वेंगणु॥ तलयोळु नूरु मुर शगदिन् मुर शगविन मुरै।
निरै इरंडेळुवुदु नापत्तेटुमां ॥११३॥ अर्थ--उस जगती स्थल के मंडप के ऊपर दो कुंभ हैं। पहली जगती के मंडप पर रहने वाले सात सौ बहत्तर घर हैं। दूसरी जगती के मंडप पर सात सौ चालीस घर हैं और नीसरी जगतो के मंडप पर सात सौ पाठ घर हैं ॥११३५।।
कूडत्ति नेनवे कोटगं कोडि। पोडत्ति निलवत्तेळाइरंकळि ॥
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