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________________ मेरु मंदर पुराण [ ४० ३ अर्थ - जिस प्रकार समुद्र में नर मंगर मत्स्य अपने दोनों पंखों से छोटे मच्छर को अपनी बगल में लेकर घूमता रहता है । उसी प्रकार वह राजा अपनी दोनों पटरानियों को - अपनी बगल में लेकर काल व्यतीत करता था। वह आदित्य देव और धरणेंद्र के जीव दोनों ने एक २ पटरानियों के गर्भ में जन्म लिया ।। १०१७।। मालिनि तन् कनादि तापनन् मामेरु वानान् । पालन माळि मदिगद् भवनन् मंदरनु माग ॥ वेल ये सरिद वाळि पोर्कळि शिरंतु वेदान । ज्ञात्तु फिडरैतीर नडक्कं कथं गत्तै योत्तान् ।। १०१८ ।। अर्थ - मेरु मालिनी पटरानी की कुक्षि से प्रादित्य देव के जीव ने जन्म लिया । उसका नाम मेरु रखा गया और अमृतमति नाम की रानी की कुक्षि से धरणेंद्र के जीव ने जन्म लिया उसका नाम मंदर रखा गया। यह दोनों राजकुमार कल्प वृक्ष के समान याचकों की इच्छा पूर्ण करने वाले हो गये ||१०१८ ।। मंग कोंगे यन्नं कुवट्टि निन् ट्रिळिंबु नल्ल । शिंग पोदंगळ पोल तबिशिडं तवळ दु शेंडू ॥ पंगतलंगळ पोलुं पवळच्चोरडियं पारा । मंगे तन् सेनिं सूट नडंबिट्टा माले याग ॥ १०१ ॥ अर्थ- ये दोनों बालक अपनी माता के स्तनों का दूध पीकर वृद्धि को प्राप्त हुए । सिंहनी के बच्चों के समान घुटनों के बल चलते थे । शनैः २ वे खडे होने लगे ।। १०१६ ।। २ Jain Education International नाविळ कोंचि नल्लकले यल्गु नलत्तं युंडु । माविळ कळिरु तेरवाळ विट्रोळिल वल्लरागि ।। तेविळंकुमरर् पोल तेसोडु तिळंक्कु मेनि । कोविळंकुमरर् कामन कुनिशिलं किलक्क मानार् ।। १०२० ।। अर्थ - तदनन्तर ये दोनों राजकुमार चौसठ कलाओं में निपुण होकर अर्थात् राज्य कला, शास्त्र कला, शस्त्र कला, अश्व कला, हस्ति कला, प्रारोहण कला प्रादि २ अनेक कलानों में प्रवीरण होकर मौवनावस्था को प्राप्त हुए ।। १०२० ।। कडेदं नल्ललगं वेन्न करुतिडं वेळुत्तु चूळ । मडंगल पोन मोई विन् मनतिनं कनत्तळिक्कुम् ।। तडंगरणम् पाग नल्लार् तमुविल नानेट्रि तानं । डंगि निड्रनंगन् मैंदरुळ्ळतं येळिक्क लुट्रान् ।। १०२१। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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