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मेह मंदर पुराण
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को यदि संतोष से छोड दूंगा तो अगले काल में पुनः यह किसी दूसरे के साथ उपसर्ग करेगा
९९२॥ मोवलंकुळलि नारुमा विज यडिप्पडप्पार । शवियां सजि येदन ट्रिरुवडि कमलं सरं वन ॥ कौविय मिडिनिड, शिरप्पयरं दोदि नल्ला ।
लेव्वगै विज येनु मेदिर पर लोळिग बेंड्रान् ।।६६३॥ अर्थ-विद्याधरों के लोक में सुन्दर २ केशों वाली स्त्रियां हैं। वे सभी संजयंत मुनि के चरण कमलों को मन, वचन, काय से स्मरण करतो हैं। सभी ये विद्याए स्त्रियों को प्राप्त होंगी। यदि उसी श्रद्धा से पुरुष इस विद्या को साधेगे तो वे सफल नहीं होंगे ॥९६३ ।
तरै मडिलग मन्न तडवर इवन कन् मेनाट् । पिर मरि मुदल विज येडि पड पिनय नारु ।। किरि मंदानिक्कुलत्तु मैंदर कागेंड्रि तन्वे ।
रिरिमदं मेंडोर कुंडि निरव नालयं समैत्तान् ॥६६४॥ अर्थ-इस प्रकार धरणेंद्र के कहने के बाद जिन संजयत मुनि ने जिस पर्वत पर मोक्ष प्राप्त किया था उस पर्वत पर जाकर उपवास करने वाली स्त्रियों को ब्राह्मी आदि महाविद्या सिद्ध होंगी। इस विद्युद्दष्ट्र के वंश में उत्पन्न होने वाले को यह विद्या सिद्ध नहीं अतिरिक्त कुछ नहीं होगा। यह मुनि जिस पर्वत पर से मोक्ष प्राप्त किया हो उस पर्वत का होगी। इसके नाम हीमंत रखकर उस पर्वत पर एक मंदिर का निर्माण करा दिया ||१६४॥
मंजुलामल मेंलमलि मानगर । पजनन् मरिण योडु पशुं पन्नार् । सजयंद भट्टारक शेट्टगं ।
नजुगर किरैवन् शंदु नाटि नान् ॥६६॥ अर्थ-तत्पश्चात् धरणेंद्र हीमंत पर्वत पर संजयंत नाम मुनि के तपश्चरण के स्थान पर मंदिर बनाकर उसमें संजेयंत मुनि की प्रतिमा स्थापित कर दी ।।६६५|
मुळवु तन्नुमै मुंदै मुळंगिन । मुळे मळ इन मुरंड वलंबुरि ।। सुळल निळे तिट्टन कागळम् । कुळलोगिन वीरणं कुळांगळे ॥६६६॥ निरैद किन्नरर् गीत निल मिस । येरवे येमिन्नि नगनो माडि नार ॥
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