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मेरु मंदर पुराण मद्रिवन् दनक पोन द्रवत्तिन् मेलेनक्कु वंदि । चुद्रभु शेल वेंदुम तोक्कड निर्क वेंड्रि ॥ पेट्रि ये निनत्तु सेंड्र पिरपिन् कनीगि वेळ्ळि ।
वेपिन् कन् वडाक्किर् सेडि कनग पल्लवत्तु वेदन् ।।३।। अर्थ-उस मृगसिंह नाम के तापसी ने कौन सा निदान बंध कर लिया? उसने यह निदान बंध कर लिया कि मुझे अच्छे २ बंधु मिले, आकोश में गमन करने की विद्या प्राप्त हो जाय, चक्रवर्ती पद मिल जावे। मैं जो तपस्या करता हूँ इसके फल से मुझे उक्त सब मिल जावे । इस निदान बंध से वह तापसी मर गया विजयाद्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी से सम्बन्धित कनक पल्लव नाम के नगर में वज्रदन्त नाम का राजा था ।।६८३।।
वज्जिर दतंनुक्कुं मादर् वित्तु प्रभैक । मिच्चयार् टोंड्रि वित्तुवंत नेंड्रियेव पट्टाण ॥ बज्जिर पिळवु पोलुं वेरत्ताल वंदपाव । तिच्च गै मुनिक्क निवनंद वमच्चन् कंडाय ॥९८४॥
अंर्थ:-उस राजा की पटरानी का नाम वित्धुप्रभा था। उस रानी के गर्म में प्राकर वह तापसी पुत्र हुमा । उस पुत्र का नाम विद्य द्दष्ट्र रखा। वह अनन्तानूबंधी क्रोध के उदय से संजयंत मुनि को देखते ही क्रोधित हुमा सिंहसेन राजा के समय शिवभूति नाम का मंत्री अर्थात वह सत्यघोष नाम का मंत्री था। उस समय का किया हुआ बैर यहां तक नहीं छूटा, बल्कि प्रत्येक भव में उपसर्ग करता आया है । ऐसा समझना चाहिये । इस प्रकार मैं कहने वाला तुम को मालूम हो गया क्या ? इस तरह उन्होंने पूछा ।।९८४॥
वेरत्ताल वेदर् केंड पगवनाय वेय्य तुंव । भारत मुडिय चंडान् पगैव नाय तनकुत्ताने ।। बेरत्तै वेरु मिडि वेदन कोटिळिब।
भारत मुडिय चंद्रान् पन्नगर् किरव वेंड्रान् ॥१८॥ अर्थ-इस प्रकार आदित्य देवने धरणेंद्र की तरफ देखकर कहा कि हे धरणेंद्र सुनो! एक भव में सिंहसेन राजा पर किया हुआ शिवभूति द्वारा बैर इस भव तक तीव्र क्रोध के रूप में शत्रु भाव से अब तक पा रहा है। तीव्र बंध करके अनेक नरक गति आदि अशुभ गतियों में दुख प्राप्त करने वाला तू हो गया। शुभ परिणाम को धारण किये हुए सिंहसेन राजा ने शुभ गति को धारण कर प्रागे चलकर मोक्ष गति को प्राप्त कर ली ॥८५।
मांदिरि नांग मापिन् वानरत्ति नागं । तेरि नरगन् मिक्क मासुन नरगन् वेडन् ।
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