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मेर मंदर पुराण
प्राळि वेल् तंडु शंग मरु मरिण विल्लु वैवा । ळेळु मा लिरत नंग लेळायिर ममरर काप । माळे मेरवलन् मादे वियरेन्ना इरत्ति रेट्टि ।
वेळ मेट्रिर कोंडे, नाड़ मेललत्त दामे ॥२५॥ अर्थ-उन केशव और वासुदेव के पास चक्रायुध, बेलायुध, दंडायध जय शख जयखंड मणि आदि २ सात प्रकार के प्रायुध रत्न रहते थे। इनमें एक २ प्रायुधों की रक्षा के लिये सात हजार व्यंतर देव रहते थे। और स्वर्ण, मोतियों आदि से निर्मित किए हुए प्राभूषणों वाली सोलह हजार रानियां होती हैं। तथा राजा को भेंट देने वाली अनेक रानियां केशव के होती हैं ॥२५॥
माल दंड मोग वाळि कलप्पयि पलन वागुं । नालु नल्लि यक्कर नाला इरवर कापि यदि शेल्व ।। रेल वार् कुळलिन् मादे वियर मेन्ना इरवर ।
मेलु लाम् मदिय पोलुं मेवि यान् विरुव पट्टार् ॥२६॥ अर्थ-मणियों के दण्डायुध, अतिशक्तिशाली बाण, हलायुध, रत्नों के अनेक प्रकार के मायुध यह सभी वीतभय के पास रहते हैं। इनकी चार हजार यक्ष यक्षिणियों द्वारा रक्षा की जाती है । और चंद्रमा के समान पटरानियां उस बलदेव' के थीं ।।१२६॥
कंदिले नाटु कंड मंद्रि निर कामर शेल्व । तिदु वानुवलि नारो डिव नीर कंडले याडि ॥ येंद रत्तिरै वन् पोल वांडुगळ पलवू शेंड्रार् ।
तिरर् कळिट, वेदन् विवोडनन् वियोग मानान् ॥६२७।। अर्थ-उस गंधिल देश में तीन खंड की संपत्ति को प्राप्त हुआ वह विभीषण नाम का अर्द्ध चक्रवर्ती उसका भोग भोगते हुए आनंद रूपी समुद्र में लीन हो गया था। और दोनों भाई सुख पूर्वक भोगोपभोग के साथ प्रानद सहित काल व्यतीत करते थे । समय पाकर वह तीन खंड का अधिपति विभीषण मरण को प्राप्त हुआ ॥२७॥
अरुमरिण यिळंब नागम् पोर् पलनलं वंदाट । पेरुगिय पेरुगिय तुयर् मुट पिरविय वेरुवि पिन्नान् । मरुविय पोरुळु नाडु मैंदर गक् कोंदु माटे ।
विरगिना लेरियुं वीतराग मा मुनिव नानान् ॥२८॥ अर्थ-विभीषण के मरण को देखकर, जिस प्रकार नागफरिण में से रत्न चला जावे और उस रत्न के चले जाने से नाग को महान दुख होता है, उसी प्रकार बलदेव को
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