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________________ ३७२ ] मेह मंबर पुराण पुष्य रहता है. लक्ष्मी रहतो है । जब पुण्य समाप्त हो जाता है तब एक क्षण भी वहाँ लक्ष्मी नहीं ठहर सकती॥१७॥ मलमिश मदिय नीळर् परवि पोन् मत्त याने । तल निशं कुडयी नीळल तरणीय मुळुदु मांग ।। निलविश इ.काएं निद्रव रिल्ल येनुं । तल वन तानिव्वाळि तडिददु कोडिदि डार् ॥१८॥ अर्थ-प्रतिवासुदेव के मर जाने के बाद वासुदेव जिस प्रकार उदयाचल में सूर्य का प्रकाश दीखता है, उसी प्रकार वह वासुदेव महान बडे हाथी पर बैठकर अपने घर धवल छत्र को धारणकर जब वापस पाया तो उस राजधानी के लोग कहते थे कि यह लक्ष्मी वैभत्र पुण्य के माधीन है। एक जगह स्थिर नहीं रहती। यह शरीर भोगोपभोग आदि सब क्षणिक है। प्रतिवासुदेव का पुण्य समाप्त होते ही वह उसी का चलाया हुया चक्र वापस जाकर उस ही को मार दिया। यह पुण्य पाप का फल है । ऐसी चर्चा नगर में हो रही थी |१८|| गरुडन इळिदु कैमामि वंदु पुरोदन् काट । कुरवळुरयं कोडि शिल बलं वंदेंदी॥ पेरियव निड पोतिन् वेदर विजयगळ् विन्नोर । सरु तिर योडं बंदु ताळवंडि परवि नानं नारे ॥१९॥ अर्थ-तत्पश्चात् वह वासुदेव गरुड पर से उतर कर हाथी पर बैठ गया और वहां जो राजपुरोहित थे उनके कहने के अनुसार महान तपस्वी तथा कोटशिला रूपी पर्वत की प्रदक्षिणा की। तदनन्तर वहां रहने वाले विद्याधर राजा, भूमिगोचरी, व्यंतर देवों के अधिपतियों ने अपनी २ शक्ति के अनुसार उनको भेट दी और राजा की स्तुति की ।।९१९॥ मलरेन मलय यदि वैतवन् मन्नर सूळ । वलर कदिराळि पिन् पोय विश यति पोडत मोळंदु । निल मगडिलगं पोलु मग्रोविया पुरत नी। मल योड मदीयं पोल मन्नवर तुन्नि नारे ॥२०॥ अर्थ-तदनन्तर वह विभीषण अपने भुज-बलों के द्वारा जिस प्रकार एक फूल को । हाथ में लिया जाता है उसी प्रकार उस कोटशिला पर्वत को अपनी अंगुली से उठा लिया। वह विभीषण अपने बड़े भाई वीतमय सहित अनेक राजा महाराजाओं को साथ लेकर दिग्विजय को गया। जाते समय वह चक्र उनके मागे २ चलता था। इस प्रकार वे सभी राज्यों पर विजय पाकर अयोध्या नगरी में प्राये ॥२०॥ मबि बोड़ करोय येगं करमा कडले पोल । पुरियर, काबल पुगं पातिवर पुक्क पोल्विन ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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