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________________ मेरु मंदर पुराण [ ३१ वेरुक्कोंडु शेने योड वोळंदोळि मदिई निड्रा। नुरुत्तेळ कालन् पोल उडंड, चक्करत विट्टान् ।।६१४॥ पनडु कडलिर् शेल्लुं परुदि पोलाळि शेल्ल । मुडि मन्नर् नपुंगि इट्टार मुदुगिट्ट दरशर शेनै ।। पडे मन्न राते©दार माटवन् पक्कत्तुळळार् । मिडेगति राळि मेरु सूळवलं परुदि पोल ।।१५।। अर्थ-इस प्रकार युद्ध प्रारम्भ होने के बाद जिस प्रकार सूर्य पूर्वाचल से उदय होकर पच्छिम को जाते समय चंद्रमा का प्रकाश क्षीण दीखता है उसी प्रकार वासूदेव की सेना एक दम शिथिल होकर भाग गई। पुण्यहीन प्रतिवासुदेव अतिक्रोध से अपने हाथ में रहने वाले चक्र को वासुदेव पर चलाया। जिस प्रकार सूर्य समुद्र के बीच में होकर जाता है उसी प्रकार वह चक्र इस सेना के बीच में होकर प्राते देखकर वासुदेव घबडाया और उनकी सेना भी पीछे हट गई। उस समय में प्रतिवासुदेव के सैनिक लोगों ने जयघोष किया। उस प्रतिवासुदेव के द्वारा चलाया हुआ चक्र प्रायुध वासुदेव के पास पाकर जैसे पहाड की परिक्रमा देते हैं उसो तरह वह चक्र उनकी तीन प्रदक्षिणा कर उनके चरणों में गिर गया ।।१४।।१५।। केशवन ट्रन्नै सूळंदु वल पक्कं केळुम कंडु। पेशोना वगनाळि पिडित्तवन ट्रिरित्तु विट्टान् ।। मूसु तेम कवसन् कोंदु मुइवर मागु पुक्कुत्त् । देशर दुरुवि योडि दिशं विळक कुरुत्त देंड्रे ॥१६॥ अर्थ-चक्रायुध के परिक्रमा देकर चरणों में गिरते ही वासुदेव ने यथायोग्य उसकी पूजा करके हाथ लगाकर दाहिनी तरफ ले लिया। अपना विरोधी जो प्रतिवासुदेव था तुरन्त उसी पर वह चक्र छोड दिया। वह चक्र सीधा जाकर प्रतिवासुदेव के सोने में जाकर घुस गया और तत्काल वह मरण को प्राप्त हो गया। वह चक प्रतिवासुदेव के लगा और उसे मारकर पुनः वासुदेव के पास लौटकर या गया। और उसने दया करके वहां रख लिया। ॥ १६॥ करु मुगिलुरुमि नोडि केशवन के नाळि । युरु मिडि पुंड नील मलई लोनाने वीळप ।। विरुळ परंदिट्ट देंगुम यावरूं नटुंगि घोळंदा । . रोरुवरर्ग निड़ दूंडो तिरुवेन उरै तिट्टारे ॥१७॥ अर्थ-विभीषण के हाथ से वह चक्र जाकर प्रतिवासुदेव को लगा और वह मर गया। मरते ही उसकी सेना में हाहाकार मच गया, और सैनिक लोग मूच्छित हो गये। वहां पर साधारण लोग यह चर्चा कर रहे थे कि यह लक्ष्मी एक स्थल में वास नहीं करती। जब तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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