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________________ ३६२ ] मेरु मंदर दास वाले त्रस नाडी तक के जीवों को अपने अवधिज्ञान द्वारा जानने की शक्ति होती है। मौर वे सिद्ध परमेष्ठी के समान रागरहित होकर वीतराग भावना से युक्त होते है । और स्त्री रहित बाल ब्रह्मचारी रहते हैं । पूर्व जन्म में अच्छे दुद्ध र तपश्चरण करते समय उस भील के द्वारा घोर उपसर्ग को सहने वाले वीर पुरुष वजायुष मुनि के समान कोई दूसरा नहीं है ।। ८८६ ।। कून शिलै पगळि कोतु कोडिय वन् कुळय वांगि । मानगळं मरेयुं बोळत मुनिवने वरुत्तिप्पावि । तान् शिलं नाळि लेळा नरगत्तै शेरवु काटिर् । 1 ट्रेन सुडुतीयिनी पोर् ट्रिगेत्तु पोय् नितत्तु वोळ वान् ॥ ८८७॥ वीळ दंव कनतु दंडाल विळ प्पर वटुक्कि हट्ट. सूळ बेव रुरुक्कु शैविन् कुट्ट व मुंडेंबु काटिट् ॥ टाळ व वन् ट्रन्नै बांगि शक्कि लिट्टर तिट्टाट्ट । सूळ मुळ्ळिलाय मेट्रि तुयरंगळ पल शेदार ॥ ६८८ ॥ अर्थ- वह पापी भील जंगल के पशु पक्षियों को मारकर खाया करता था। इस तीव्र पाप के उदय के कारण से थोडे दिनों में मरकर वह सातवें नरक में गया। उस नरक की भूमि में उस भील का जीव जाकर पड़ते ही वहां के पुराने नारकी महान घोर दुख देने लगे । ताम्बे को गर्म करके गलाकर प्रमृत बताकर उसके मुंह में डालते । जिस प्रकार धारणी में तिलों को डालकर तेल निकाला जाती हैं, उसी प्रकार उसको घाटी में पेलने लगे । प्रत्यंत तीक्ष्ण कांटेदार वृक्ष पर चढाकर उसको ऊपर से नीचे गिराते थे । नीचे गिरते हो जैसे बगैर पानी के मछली तडफडाती है, उसी प्रकार वह नारकी तडफडाता था । इस प्रकार घोर दुख सहता था । उस नारकी की आयु तेतीस सांगर की थी और पांच सौ धनुष ऊंचा उसका शरीर वा ॥८८॥ Jain Education International. पाव तान नडि मंदिर पाविवान् पुडे यूट्टे । योविला वेळंबु बीडयूर विल व्यरं तु बंधार् ॥ ट्राविला तुंब मुद्रान् तझिलं तळकाद । वायु वा लांगु पेट्र वाळि कालसे येंसाम् ॥८८॥ प्रारवत्ता लोव नानं यायिना नोरुव निड्र । वेरता नरगसाळंब विळंबिय विलार्ग ळिव ॥ भारतं मुडिय शेंद्रा पनगर किरैव पारा । या शेट्रगं लिङ्गि पगं नयनिं कंडाय् ॥८०॥ अर्थ -- वह भील का जीव नारकी पहले भव का सत्यघोष नाम के मंत्री का जीव था। इस प्रकार प्रशस्त राग परिणति से सिंहसेन राजा का जीव हाथी की पर्याय में हुआ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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