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________________ मेर मंदर पुराण [ ३५९ अर्थ-जिस समय रत्नायुध की दीक्षा हो रही थी उस समय उसकी माता रत्नमाला जो राजमहल में बैठी थी तुरन्त ही उसने भो मुनिराज से दीक्षा ग्रहण करसी पोर उसने अनेक प्रकार के व्रत उपवास करके अपने शरीर को कृश कर दिया ॥७॥ कच्चनि मुल नार पार् कादल पोट्रवत्तिन् कन्न। मेच्चिय मनत्तनागि वेइलिनै यादि योगिन् । पच्चुदि इंडिनिड़, कालंगळ पल नोट्रिर् । तच्चुद कर्प पुक्का नरदन माले यो९॥८७६॥ अर्थ-तत्पश्चात् रत्नायुध जैसे राजमहल में रहते समय पंचेंद्रिय विषयों में प्रानंद. भोगता था उससे भी अधिक पानंद दीक्षा लेने पर तपश्चर्या करते समय भोगता था। और निरतिचार पूर्वक तपश्चरण करते हुए अन्त समय में सल्लेखना विधि से रत्नायुष मुनि पौर उनको माता रत्नमाला दोनों ने सन्यास विधि से शरीर छोड करके दोनों अच्युत नामक कल्प में देवपद को प्राप्त किया ।८७६।। इरुवत्तीराळि कालत्तिरवत्ति रायिरत्तान् । डोरुवित्तान् ममुद मुन्ना बुंवरिन् पत्तं युदार ॥ मरुवित्तान योगि निडान् वज्जरायुधनु पिन्न । नरगत्ताळ रविन श ग नविद्र. वन् नरगर कोवे ॥८७७॥ अर्थ -आदित्य देव कहने लगा कि हे धरणेंद्र सुनो! इस प्रकार अच्युत कल्प को प्राप्त हुए वे दोनों जोव बाईस सागर प्रायु से युक्त और बाईस हजार वर्ष में एक बार मानसिक आहार लेने वाले हो गये। इस प्रकार वे देवगति के सुख को अच्छी तरह से अनुभव करने लगे। इधर वे बचायुव मुनि प्रात्म योग में लवलीन थे। अब पीछे कहे हुए नरक में रहने वाले सर्प के जीव के विषय में कहूंगा । उसको लक्ष्य पूर्वक सुनो।।८७७॥ परुमित्त कडलगळ पंक प्रयैर् पत्तुं पेट्.। नरगत्ति नरिबिर पोंदु नाळ वगै याळि कालं ।। .. तिरत्तावरतीर् सेंड.तीयवान् तुयर मुद्र.। . भरवत्तिर् कच्च येन्न पुरत्तिन् वे नानान् ॥८७८॥ अर्थ-उस सर्प का जीव पंकप्रभा नाम के चौथे नरक में उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की आयु का अनुभव कर वहां से प्रायु पूर्ण कर उस स्थावर पर्याय में जन्म लिया। और वहां अनेक दुखों का अनुभव करने के बाद इस भरतक्षेत्र संबंधी एक देहात में भील होकर उत्पन हुमा ।।८७ ॥ तारण किरण नेन्न बेडन् दन् मनविताळंद। बारिने यनयक को मंगि तन् सिलवन् मिक्क ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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