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________________ ३५६ ] मेरा मंदर पुराण मौवलं कुळलीक्ागं मयंगि मादवत्तं विट्ट न । सेव्वि ये काटि तोट्र सेरिविट्ट पांव तन्नात् ॥ नौ उडल विट्ट, वंदनो वलिय निव्वाणं याना । निव्वनत्ति यांड्रि लोग पचति इयंबल केळा ॥८६७॥ अर्थ- सुन्दर रूप से युक्त उस वेश्या के साथ मुनि ने अपने पद से च्युत होकर विषय भोग करते हुए तथा मांस भक्षण करते हुए कुछ समय बाद ही प्रार्तध्यान से मरकर हाथी की पर्याय में जन्म लिया ||८६७|| Jain Education International अप्पर पर नोविट्टल मुद्रऴुवि इ.ड्र. । में पड उनरु तोंड्र विरद शोलत्त वाय ।। पिडित दंडून शेंगे यदिळ मुले नादं । तुप्पुरळ तोंडे सेव्वाय पर्यानिवु सोल्लि निड्रान् ||८६८ ॥ अर्थ - इस प्रकार वह हाथी अपनी इस पर्याय में पूर्व जन्म में किये हुए पाप के उदय से स्मरण कर आत्मा में ग्लानि कर रहा है और ग्लानि होने को अपने निद्या मांस मिश्रित भोजन को न खाकर चुपचाप खडा हुआ है । यह पूर्वजन्म में वेश्या के साथ मोहित होने के कारण मद्य सेवन करके दुर्ध्यान से मरकर हाथी हुआ है। ऐसा मुनि वष्त्रायुध ने कहा । ॥६६८।। 77779. विरितिरै वेतिज्ञाल कायलर् बिळुम वेनो । येरि पुरं नरगड़ि वीळु बिडार तुंब वेळ्ळ ॥ तिरं पोर कडले नोंगि तुरंवुडन सरिदु नोर् पिन । वज्रमेदिर् कोळ वीडुं कानड दलगु मन्न् ॥ ८६९ ॥ अर्थ - पुनः वह मुनिराज कहते हैं कि हे राजा रत्नायुष ! यह जीव अपने ग्रात्मस्वरूप को भली भांति न जानने के कारण पंचेन्द्रिय विषय में लीन होकर प्रन्त समय में विषय कषायों के तीव्र परिणामों से मरकर अग्नि के समान रहने वाले घोर नरक कुण्ड में कर अनेक दुखों को भोगता है। इससे देवगति व मनुष्य गति प्राप्त नहीं कर सकता है । इसलिये हे राजन् ! जन्म मरण रूप संसार को त्यागकर मनः पूर्वक प्रारिपसंयम और इन्द्रिय संयम धारण कर बारह प्रकार के तप आदि करने से ही देव पद व मोक्ष पद की प्राप्ति इस प्रारणो को हो सकती है ।८६६ ।। बिले ला मनिये विट्ट: तसेच नाळ तायै विट्ट कासेतं मेथ लंड्रिं । तन्नडि याळ योंबल ॥ NO ❤ निलंडला भोग मेवि निङ्ग नल्लरतं नींग | मित्र कुला मकर पैबुं तेंदु तोळ बंद वेंड्रात् ॥ ८७० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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