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________________ ३१५ ] मेरा मंदर पुराण अर्थ - तोते के शब्द, वीरणानाद के समान मधुर शब्द बोलने वाली हरिण की प्रांख के समान नेत्र वाली, पुष्पलता के समान शरीर युक्त वह वसुन्धरा मन्मथ को मर्दन करने वाली थी। ऐसी सुलक्षरगा पटरानी के साथ वह राजा विषय भोग तथा सुखोपभोग में प्रानंद के साथ समय व्यतीत करता था ।। ७५५।। बेशुडय शीय चंदन् केवच्चत्तिन् वळ वि । बास मुलवं कुळलि मंगे तन् वैटू ट् ॥ तूसु पोदि पावैयन तोंड्र यवन मन्नोर्क । काश केड वंददोरु मामरिणय दानान् ॥७५६॥ अर्थ - अत्यंत प्रकाशमान से युक्त पूर्व जन्म में तप के बल से उपार्जन किया हुआ ग्रहमिंद्र प्राप्त किया प्रीतंकर नाम का देव जो पूर्व जन्म का सिंहसेन राजा का जीव था वह मिंद्र नामदेव की आयु पूर्ण करके वसुन्धरा रानी के गर्भ में आया और नवमास पूर्ण होने के बाद पुत्ररत्न का जन्म हुआ। पुत्र के जन्मोत्सव के उपलक्ष में उस राजा ने प्रजाजन तथा याचकों की इच्छा पूर्वक दान देकर उनको तृप्त किया ||७५६ ॥ शेक्कर मलिवारिण निर्डतिगंळन बंदान् । कक्कुलं विळंग वण्रग ट्रोंडिय कनते ॥ fafteरमशालि विनं येट्टु वेरुमें । तक्क पयरं चक्करायुध नैन्निट्टार ||७५७।। अर्थ- वह पुत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया के चंद्रमा के समान वृद्धि करता हुआ पूर्णिमा चंद्रमा के समान अपने कुल को प्रकाशित करने वाला हो गया। जन्म होते ही बालक के सम्पूर्ण शुभ लक्षणों को देखकर राजा ने मन में विचार किया कि इस पुत्र के शुभ लक्षण ऐसे हैं जैसे शुभ कार्य करके यह मोक्ष में जावेगा । उसका नामकरण संस्कार करके शुभ मुहूर्त में उसका नाम चक्रायुध रखा गया ||७५७ || Jain Education International मंगयर् तङ कक्कु वट्टिलिंबु निरंमदिपोर् । पुंगुदवि शिनिडै सिगं पोगगत्ति नडिनर् ॥ शंकमल निल मडंदै शेनि मि यनिंदु | पोंगुमी मिलुडेय विडं पोल नडंदाने ||७५८ ।। अर्थ- - वह चक्रायुध बालक अपनी माता के स्तनपान से वृद्धिगत होता हुआ क्रम से सैनः २ बढने लगा । वह बालक सिंह के बच्चे के समान घुटनों के बल चलने लगा और गिरते पडते उठने लगा और शनैः २ चलने लगा ।।७५८ ।। अंजु वरुडं कडंदु नामगळोळाडि । जिले मुदर् पडे पई ड्र पिनं टॅबूस ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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