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॥ सप्तम अधिकार ॥
चक्रायुष को मोक्ष प्राप्ति उलग मेन तिरुविनिडे यदि यन जंबूइत् । सलनिलवु भरत मलि धर्म खंड मदनिर्॥ पुलवर् कुगळ वरिय पुरि चक्कर पुरमेन् ।
एलगुडेय विरब नुरं नगर मेन उळदे ॥७४६॥ मर्च-विस प्रकार मनुष्य शरीर के मध्य में नाभि होती है उसी प्रकार जम्बू के मध्य में सुमेरु पर्वत है। उस पर्वत के दक्षिण भाग में जम्बू द्वीप से संबधित भरत क्षेत्र है। नस भरत क्षेत्र के मार्य खंड में विद्वानों द्वारा वर्णन करने योग्य ऐसा भगवान के समवसरण के समान प्रत्यंत सुशोभि । चक्रपुर नाम का सुन्दर नगर है ।।७४६॥
किडग मवि डेरुख किड माळिगै ईनोळंग। नदुबरसन माळिगे ईनमरं दिरंद नगरम् ॥ नुरंगुदिरे वेदिग योडार कुलमलंग।
मदुबद मलै युरेव दीपमदु वर्नत्ते ॥७५०॥ अर्थ--उस पट्टन के चारों पोर घेरे हुए एक महान गहरी खाई है। चारों ओर सुंदर रास्ते हैं। उसके अंतर्गत छोटी २ गलियां हैं। बडे २ ऊचे सतखणे महल मकानात हैं। उन सबके बीच में राजा का राजमहल है। यदि सभी को विचार करके देखा जाय तो जिस प्रकार जम्बूढीप शोभायमान है उसी की उपमा के अनुसार यह पट्टन है। इस नगर के चारों मोर विस्तार पूर्वक गहरी खाई ई तथा छोटी २ नदियोंके समान गलियां हैं। बड़े सामन्तों के मकानात बने हुए हैं। रजा के राज महल मानों मेरु पर्वत ही है ऐसे प्रतीत होते हैं। इसलिये इस नगर को ग्रंथकार ने जम्बूद्वीप की उपमा दी है। ७५०।।
तोग यनैयार कनडमार मिड मोह पाल । पाग पदि नुदलि यगळ पाडु मिर पोर पाल ॥ मेंग मेन वेग मुडे माग निल योरपाल ।
पूग मोदलाय मलि पुरंवनय दोरुपाल् ॥७५१॥ प्रथं-उस नगर में किनारे पर नरमयूर के समान सुन्दर शरीर वाली स्त्रियों के मृत्य करने की नृत्यशाला बनी हुई है। मोर मष्टमी व पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान प्रकाशमान मुखवाली स्त्रियां वहां नृत्य करती हैं। आकाश में जैसे काले मेघों का समूह रहता है।
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