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________________ मेद मंदर पुराण नेरिगिय वरवं कोळ्ळ निड्स में मे तम्मे । लोoक्किय मनत्तगागि युडंबु विट्टोरुगं सेंड्रार् ॥७४४॥ पाविट्टन मेलोर् कोंब पनित्तिला मनत्ति नार् पोय् । काविट्ट कत्तिरे कडल पेटून कुरिशें कंमा ॥ पेर् पेटू विमानतिन कन् मुनि वर्ग प्रभनानान् । ट्री पत्तं पुरे मादर् देवक्कु तिलद मानार् ।।७४५।। अर्थ - जिस प्रकार सर्प को अंगार, केतु और शनि को राहु ग्रसित करता है उसी प्रकार मुनि व दोनों आर्यिकामों को वह अजगर निगल गया। उस समय वे तीनों समता धारण कर शांतिपूर्वक परीषह सहन करके देवगति को प्राप्त हुए। पापी अजगर ने तीनों को निगलते हुए किसी प्रकार का हलन चलन नहीं किया और कई दिन पश्चात् वह दुष्ट पापी अजगर मरकर चौथे नरक में गया । वे मुनि कापिष्ठ नाम के कल्प में शांति पूर्वक शरीर को छोडकर सोलह हजार वर्ष की प्रायु धारण करने वाले रुचिकर नाम के विमान में रवि प्रभा नामका महद्धिक देव हुआ और वे दोनों प्रार्यिकाएं प्रत्यन्त गुरण को प्राप्त करने वाले सामान्य देव हुए ।। ७४४ ।। ७४५ ।। ३१४ ] मरुविला गुणत्तिनार् पोय् वानवराग मायाक् । करुविनार पांव पोगि नरग नांगाव देवि ॥ roब वो विरडरं याम् पुगे युयरं देळंदु वीळु । Heat डिरंड वैविल्लु यरं वो रुडंव पेट्रान् ॥७४६ ॥ अर्थ - इस प्रकार दोष रहित गुरण को प्राप्त कर वह तीनों जीव देवलोक में उत्पन्न हुए और प्रतिद्वेषी वह पापी अजगर का जीव मरकर चौथे नरक में गया । वह पापी सर्प साढे बासठ धनुष शरीर की ऊंचाई को प्राप्त हुआ और पापोदय से साढ़े बारह हजार योजन ऊंचा उछल कर फिर नीचे गिर गया। इससे वह अत्यन्त दुखित हुआ उसका सारा शरीर छिन्न भिन्न हो गया ।। ७४६ ।। Jain Education International परत्तिनुं काक मिल्लं नवदु मिदने यार्यवु । मरत्तिनुंगिल्ले के मेवदु मदित्तिवर् तम् ॥ पिरत्तिने रिदु कोन्मिन् ट्रो गति पिरवि पेंजिल । मरतं नोतरत्तोडोंड वाळु नीर वैय्यत्तिरे ॥७४७॥ अर्थ- हे उत्तम कुल में उत्पन्न हुए मानव प्राणियों ! इस श्रात्मा को सुख शांति देने बाला अहिंसा धर्म के अतिरिक्त और कोई धर्म संसार में नहीं है । इस प्रकार भली भांति मनमें विचारते हुए उत्तम चारित्र धारण करके धर्मध्यान पूर्वक मरकर वह मुनि देवगति को प्राप्त हुआ। और वह सपं पाप के कारण मरकर नरकों में गया । इसलिये हे भव्यजीव ! यदि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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