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________________ मेरा मंदर पुराण [ ३१३ पर्याय को प्राप्त करलोगे और इस व्रत के पालन करने से मोक्ष पद की प्राप्ति होगी । ||७४०|| तूंबन तडक्कै मावे तुयर् दु नरगं पुक्कं । कांवल कंडलुगळेल्ला मवल मुटुरिदिल् पोंदु ॥ मेंबलिलाद वेल्ला विलग नुं सुळं मींडुम् । पांबदाय् पदले वगर् पाविदान् परिरगमित्तान् ॥ ७४१ ॥ अर्थ- वह आदित्य देव आदित्य से कहने लगा कि अश्वनी कोड नाम के हाथी को सर्प ने काटा और वह सर्प मर कर तीसरे नरक में जाकर वहां सात हजार वर्ष तक अपने द्वारा पाप उपार्जन किया हुआ प्रसह्य दुख का अनुभव कर संस्थावर श्रादि अनेक पर्यायों को धारण कर वहां से चयकर उस सर्व के जीव ने उस स्थान पर जन्म लिया था जिस जगह वे किररणबेग मुनिराज ध्यान मग्न थे ।। ७४१ ।। seae मिथेंब केट वरत्तिन रागि पोग । पेरियवन् कुये सेर पिरयेइ रिलगं वंगाम् || तेरियल विळित्तु काना विरं बने पिडित्त पोदि । लरुग बेंड रैप्प मीळा वच्चिय रदने कंडार् ॥७४२ ।। अर्थ – उस समय उन मुनिराज ने उन दोनों यशोधरा व श्रीधरा श्रयिकाओं को उपदेश दिया और उपदेश सुनकर वहां से प्रायिकाओं ने अन्यत्र प्रयाण किया । उनके जाते ही उन मुनिराज ने अपने स्थान को छोडकर पर्वत की गुफा में प्रवेश किया। गुफा में प्रवेश करते ही वह सर्प ( अजगर ) जो अन्दर बैठा था, उसने इन मुनिराज को देखते ही मुंह में लेकर निगलना शुरू कर दिया । उस वक्त उन मुनिराज ने "अर्हत" इस प्रकार जोर से उच्चारण किया। यह अत शब्द उन दोनों जाती हुई आर्यिकाओं के कान में पडे । वे तुरन्त ही वापस आई और उन्होंने उस गुफा में प्रवेश किया। उन आर्यिकाओं ने देखा कि वह प्रजगर मुनिराज को निगल रहा है ।। ७४२ ।। Jain Education International ais as शीरि विळित्तन् लुमिळं दु थेंब । लगंड मुं शिलिपं वंगां दरवुंबकं सादु नादन् । नुगन् तिरंड नैय तोळं पट्टि यांगुटू पोल्दिन् । मुगङ कंडार् मुनिव नोड मूवरुं विळंग पट्टार् ।। ७४३ ॥ अर्थ-उन प्रायिकाओं ने ऐसा देखकर उन मुनिराज की दोनों भुजानों को पकडकर वे उन्हें बाहर खेंचने लगी । उस समय वह बलवान अजगर उन दोनों भायिकाओं को भी पकडकर निगलने लगा ||७४३ || aoret शनि शौव्वायोडरव तान् विलुंगिट्टे पो । More वेगन ट्रनोडे यारि यांगने कडंमै ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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