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________________ [ २९१ मेद मंदर पुराण प्रकार अलग नहीं किया जा सकता उसी प्रकार गुरणमुरगी का संबंध है । कुमारी व स्त्री कहने में व्यवहार है परन्तु निश्चयं दृष्टि से एक ही है ।।६७३ ।। येत्ति रत्तालु मुंड े तत्व मेंड्र बेंडुम् । वित्तग नावि नारिर् गुरण गुरिण विकर्प वेंडार् ॥ ७ पित्तन् न नुनर्बु शैगं सुख दुःखं पिरिवु मुंड्राय् । तत्व मोळियु मारुं बीडंदान् पाळ दामे || ६७४।। अर्थ- गुणगुणी सर्व प्रकार से तत्व स्वरूप से एक ही हैं ऐसा कहने के अनुसार उसमें पीछे कहे अनुसार सर्वथा गुणी भिन्न गुण भिन्न ऐसा कहना, जैसे एक मनुष्य मरकर सुख दुख यह दोनों एक ही रहता है उसी प्रकार सर्वथा गुण गुणी को भिन्न ऐसा कहने वाले मत की दृष्टि को भी इसी प्रकार उनके मन से मोक्ष का प्रभाव होता है । अर्थात् मोक्ष की सिद्धि नही होती है ।। ६७४ ।। Jain Education International वंडून उरेप्पान् केट्पानुन मोनान्गु वेडां । निलों मिड्रा मुळ वेनि लोंडू मंड्रा । मेड्रिडा नानुगुं वेंडि प्रांतियेंडू रं क्कु पोळ्दु | निड्रवै भ्रांति याग निलं पेट्र विकर्ष मेल्लं ।। ६७५।। अर्थ- संसार में समस्त जीव एक ही है । ऐसा कहने वाले और उसी प्रकार तत्व को अभिन्न कहने वाले और चारों यह एक ही हैं ऐसा कहने वालों के मत की दृष्टि से प्रत्यक्ष विरोध होता है । कहना सुनना यह सभी भिन्न २ क्रियाएं हैं। ऐसा कहने से सर्वदा अभिन तत्व का संभव नहीं होता है । इस प्रकार कहने सुनने तथा जानने वाले तथा मत के शास्त्रों को जानने वाले ये चारों प्रभिन्न २ हैं । ऐसा कहने से यह चारों विषय भिन्न २ हैं ऐसा नहीं कह सकते || ४७५ ।। ु ड्र ेन उत्त मेर्कोळुडन सेल्लु मेदु प्रोडु | निदो रेडुत्तु काटु निड्र दन् पोरुण, मुडिक्कि || लोंड्र ेड्र मेबर्कोळ् तन् सोल्लळिवु मारदि योडि । निड्रव पक्कं सेरं दा नेरि पिरि तिन्मे याळे ॥ ६७६ ॥ अर्थ - सर्वथा भिन्न है ऐसा कहने वाले तत्व को अच्छी तरह से विचार करके देखा जाय तो हेतु दृष्टांत, उपनय प्रादि प्रात्मा से संबंधित नहीं होते । और उनसे संबंध न होने के कारण उनके मत में बाधा आती है। पहले प्रकरण में सर्वथा भिन्न ऐसा कहने वाले मत के तत्व के प्रकार, यह भी प्रत्यक्ष में विरोध प्राता है ७६ ।। वंडून उरंक्कु नल योदुवा नोंड्रन ड्रेड । निड्र तुलो वानोडुत्तिम् वीडमते ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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