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________________ २० । मेरु मंदर पुराण मुनि मा गए। उस समय वह मुनिराज त्रैलोक्य प्रज्ञप्ति के ग्रन्थ का उपदेश कर रहे थे। उस रत्नायूध का हाथी उस उद्यान में प्रा गया और उस ग्रन्थ का उपदेश सुनने लगा। उस हाथी का महावत नित्य प्रति मांस मिश्रित पाहार उसको खिलाता था। किन्तु उस उपदेश को सुनकर उसने उस दिन वह पाहार नहीं खाया। तब महावत ने राजा रत्नायुध से जाकर प्रार्थना की कि राजन् ! आज वह हाथी खाना नहीं खा रहा है । तब राजा ने एक चिकित्सक को उसके इलाज के लिए बुलाया। वह वैद्य महान चतुर था उसने कहा कि इसको कोई रोग तो नहीं है। पूर्वभव का इसको जाति स्मरण हो गया है। यदि परीक्षा करना है तो इसके सामने मांस रहित आहार लाकर रखो। तब उसके लिए मांस रहित पाहार मंगवाया गया। उस पाहार को रुचि पूर्वक उस हाथी ने खा लिया। वह रत्नायुध पहले से नास्तिक था किन्तु भगवान के वचनों पर श्रद्धा रखकर उस वज्रदंत मुनि महाराज को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके अपने हाथी के सम्बन्ध में पूछा कि हाथी ने मांस मिश्रित पाहार किस कारण से ग्रहण नहीं किया। तदनंतर मुनि अपने अवधिज्ञान के द्वारा हाथी के पूर्वभव का हाल समझाने लगे। हे रत्नायुध सुनो इस भरत क्षेत्र सम्बन्धी हस्तिनापुर नाम का नगर है। उस नगर का राजा प्रीतिभद्र था। उसकी पटरानी वसुन्धरा थी। उसके प्रीतिकर नाम का पुत्र था। वह राजपुत्र व मन्त्री का लड़का सदैव एक साथ मित्रता पूर्वक रहते थे। एक दिन प्रीतिकर व विचित्रमति ने धर्मरुचि मुनिराज के पास जाकर भक्तिपूर्वक नमस्कार करके धर्मामृत सुनकर जिनदीक्षा ग्रहण करली। इन दोनों में प्रीतिकर मुनि निरतिचार पूर्वक तप करते थे। तप करते २ क्षीरावी ऋद्धि प्राप्त हो गई। एक दिन ये दोनों मुनि विहार करते २ अयोध्या नगर के उद्यान में प्राकर विराजे। वे प्रीतिकर मुनि एक दिन चर्या के लिए नगर में गये । जाते समय जिस रास्ते से वे जा रहे थे उस जगह, एक सुन्दर बुद्धिसेना नाम की वेश्या का घर था। उसके घर के बाहर से जाते समय वह वेश्या उनके सामने जाकर खड़ी हो गई और नमस्कार करके पूछने लगी कि हे मुनिराज! उत्तम कुल, उत्तम जाति, सत्पात्र दान देने की योग्यता किस धर्म से प्राप्त होती है। मुनिराज ने कहा कि सभी जीवों पर दया करना, म्वनिदा और दूसरों की प्रशंसा करने, शील व्रत पालने, सप्त व्यसनों का त्याग करने आदि व्रतों से उनम कुल उत्तम धर्म मिलता है। तदनंतर उस वेश्या ने मुनिराज से अणुव्रत ग्रहमा किये और पांचों पापों ग्रादि का त्याग कर दिया। तदनतर वह मुनि पाहार को आगे न जाकर वापस उद्यान में उन मुनिराज के पाम पा गए। तब उस विचित्रमति मुनि ने कहा कि आज आपको इतना समय कैसे लग गया? तब प्रीतिकर मुनि ने सारे समाचार उस वेश्या सम्बन्धी कह दिये। और यही देर होने का कान्ग बतलाय।। तव विचित्रमति मुनि ने वेश्या का हाल सुनकर उसके प्रति मोह उत्पन्न हो गया। उन्होंने पूछा कि वेश्या का घर कहां किस ओर है। इस बात को सुनकर उन्होंने अमुक मुहल्ले में उसका घर है ऐसा बतला दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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