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________________ मेरु मंदर पुराण [ २५३ अर्थ-उस पर्वत की दक्षिण पश्चिम की चौडाई ५० योजन तथा लम्बाई २५ योजन है। पर्वत के दक्षिणी पार्श्व में नो हजार से कुछ अधिक और उत्तर दिशा में दस हजार से कुछ अधिक चौडाई है। उस पर्वत के नीचे दस योजन, ऊपर पचास योजन चौडाई है। वहां विद्याधरों के निवास करने का स्थान है ॥५७३॥ निड़ मुप्पंदु परि नेरिइ नार सेडियागि । सेंडून शक्क वालर वियोगर पुरंगळागु। मंड्रिय कुंडिर् पत्तु मैंदुयर् सूळियामे । लोडि निडोळिरुं कूडंमगुडं पोलोवदामे ॥५७४॥ अर्थ-उस स्थान पर दस योजन ऊपर में समान रूप में है। उसके बाजु में दस-दस योजन उत्तर श्रेणी और दक्षिण श्रेणी है। वहां चक्रवाल नाम के प्रसिद्ध व्यंन्तर देव का निवास स्थान है । और शेष दस योजन के उच्छेद में चूलिका है । वह चूलिका राजा के मुकुट के समान नो प्रकार की है ॥५७४।। इमयेत्ति निरमोरंगुं निलंगळ् पोंडिलंगुस वेळ्ळि । शिम येत्ति निरुमहंगुस सेंड विजयर्गळ् सेडि॥ समय्येत्त नांग दाव दुःखुमेर् ट्रिळिवु तन्निन् । नययोप्पर विजंया लिव्विंजयर् नागर् कोवे ॥५७५॥ अर्थ - हे धरणेंद्र सुनो ! विजयाद्ध पर्वत के उत्तर दक्षिण दोनों बाजू में ही दक्षिण श्रेणी उत्तर श्रेणी नाम के नगर हैं । और वहां उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी नाम के चतुर्थ काल में ऋद्धि को प्राप्त हुए मनुष्य जिस प्रकार रहते हैं उसी प्रकार अत्यन्त शीलवान, गुणवान, विद्याधर रहते हैं ॥५॥ येळमुळं विवेक नुदि हिलिवदु मेट्र, मिल्छ। पळुविला वरड नूर पुव्व कोडिई निर कोळ्मेत् ।। येळमुळ माइरत्ताडवत्त नान्गु निकुंम् । मुळु विल्लंड्युरु कोडाकोडि मूवार मुन्निर् ॥५७६॥ अर्थ-उन विद्याधरों के शरीर का उत्सेद पांच सौ धनुष से कम नहीं रहता है। और उनकी जघन्य मायु सौ वर्ष से कम नहीं होती है और पूर्व करोड से अधिक मायु उनकी नहीं होती है । दुखमा, दुखमा-दुखमा यह दोनों काल चौरासी लाख वर्ष प्रमाण हैं। पांच सौ धनुष अठारह कोडा कोडी काल प्रमाण है। पहले कहे हुए उत्सर्पिणी, मवसर्पिणी दोनों काल के प्रमाण है। उत्सर्पिणी काल में मायु व शरीर का उच्छेद होता है। मोर भवसर्पिणी काल . में प्रायु व शरीर का उच्छेद कम होता है ।।५७६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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