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॥ षष्ठम अधिकार ॥
वेट्रिवेल वेदनुं वेंदन ट्रेवियुं । कोट्य कुमररु कोवै यैदिनार ।। मदिद निलत्तिडे वंदु नाल्वरु ।
मुद्रन उरै पन् केळुरग राजने ।।५६१।। अर्थ-हे धरणेंद्र सुनो! वैराग्य को प्राप्त हुए सिंहसेन महाराज तथा उनकी पटरानी रामदत्ता देवी तथा इनके दोनों राजकुमार सिंहचन्द्र पूर्णचन्द्र अपनी २ प्रायु के अवसान कर देवगति को प्राप्त हुए । तदनंतर ये चारों देवगति की प्रायु पूर्ण करके इस कर्मभूमि में पाकर अवतार लेने के पश्चात् उनके विषय का अब विवेचन करेंगे ।।५६१॥
पागर पिरभ नाम पावै यायुगं । सागर तळ्ळदु पदिन नाळिन । नागरिर पिरिवे ना नडुगिर ट्राटेवू ।
पागर प्रभयुट् पारिजातमे ॥५६२॥ अर्थ हे धरणेंद्र! भास्कर प्रभा नाम के विमान में उस रामदत्ता प्रायिका का जीव भास्कर प्रभा नाम का महद्धिक देव हुप्रा और अपनी सोलह हजार वर्ष की प्रायु जब पूर्ण होने लगी तो १५ दिन पूर्व ही वहां के भास्कर प्रभा नाम के स्वर्ग में कल्प वृक्ष चलाय. मान होने लगे ॥५६२।।
कर्पगं शालिप्पदु कंड देवरु। मद्रवर् शिंदयुं मडुगि वाडिनार ॥ कर्पगत्तोडे यलुं कंठ माल युं। पोपळिदनिगळं मासु पोर्तवे ।।५६३॥
अर्थ-कल्प वृक्षों के चलायमान होने से वहां के भास्कर नाम के परिवार देवताओं में भय उत्पन्न होने लगा पौर भास्कर देव के गले का कंठाहार (माला) मुरझाने लगी।
॥५६॥ मदियोळि पदिन नाडोरु मायं दिडा। विदियोळि मासुरि ई वीयु मारु पोन ॥ मुदिर मदयनै योळि मति मासुरिक् । कदिर कळंडिडवदु कंडु वाडि नान् ।।५६४।।
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