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________________ मेरु मंदर पुराण [ २३५ तडियोडु दंडु वाळेंदि सूळं दिडा। कडयर वदुकिनार काळमेनियार् ॥१५॥ अर्थ--उस नरक में अत्यन्त दुर्गंध को प्राप्त हुए वह नारकी जीव अंतर्मुहूर्त में शरीर को धारण करने वाला होकर ऊपर से नीचे गिर जाता है, और गिरते ही उस नरक में रहने वाले अन्य २ नारकी तलवार मुद्गर, बरछी आदि २ शस्त्रों से उसके टुकडे २ कर डालते हैं ।।५१५॥ तिरितनर सेक्कुर लुट् तेचिइ। . लुरित्तनर किळिळे पुयोप्प सुट्रिडा ॥. वेरित्त नर निरत्त मुळ्ळि लव मेट्रि निन् । रुरत्तन रेविरेबिर् वळंब मुळ्ळिन मेल् ॥५१६॥ अर्थ-उस नारकी जीव के शरीर को वहां के नरक में रहने वाले अन्य २ नारकी घाणी में पेलने लगे। उसके शरीर के चमडे को खींच कर अलग कर दिया। और उसके मांस के लोथडे को तीक्ष्ण कांटों के झाड में फेंक दिया ॥५१६।। शीकुळि पुटपुग नूकि नार् शिलर् । वाकिनार से विनर युरुकि वायिर्ड। तूकि मुन्मधगै यार् पुडैत्तिरु ।। पाकवाय पिळंदिडु वारु माई नार् ॥५१७॥ अर्थ-तत्पश्चात् पुराने नारकी जीवों ने इस नवीन नारकी जीव को नारकीय कुंड में डाल दिया। तथा ताम्बे व लोहे को तपाकर गलाकर गर्म २ इसके मुंह में डाल दिया। तीक्ष्ण कांटों को चुभा २ कर मारने लगे ॥५७॥ मलैयन पेरियदो रिरुम्बु वदिन। युलै येळर् पोर् कनत्त रग सुट्टिा ॥ निले यळर कुट्टत्त वेंदु नोडिया।। तुलइन् बलि येन बेधुंदु बीळुमे ॥५१८॥ अर्थ-पुनः उस नारको को अग्नि कुण्ड में डाल दिया। उसमें जिस तरह भात . पकता है तथा अन्न को चूल्हे पर चढाने पर जैसे वह अन्न खदबदाता है, सीझता है ; उसी प्रकार अनेक प्रकार की तीव्र वेदना को वह नारकी भोगने लगा ।५१८।। पंजळ उलरंदु नापरंद वेट कैया। मजिन मडुत्तु ड नटुंगि वीळविडा॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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