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मेह मंदर पुराण पर्व-उस श्रीधर देव ने पूर्वभव में मै प्रशनीकोड हाथी की पर्याय में था। उस पर्याय को त्यागकर इस समय मैं देव पर्याय में है। ऐसा अपने प्रवधिज्ञान से पूर्वभव को जान लिया। महो! कितने प्राश्चर्य की बात है कि पूर्वजन्म में मैंने अल्पव्रत को धारण किया था
और उसी ब्रत के प्रभाव से प्राज मैने देव पर्याय धारण की है। क्या जैन धर्म सामान्य है ? केवल अल्पमात्र व्रत धारण करने से मुझे देव पर्याय मिली ! जब कोई प्राणी महाव्रतों को पालन करता है तो क्यों न उसको मोक्ष की प्राप्ति होगी। इस प्रकार विचार करके धर्म के प्रभाव से वह अत्यन्त प्रानन्दित हुमा । वहां की देवियां मंदार प्रादि सुगंधित पुष्पों की वर्षा करती हुई उनकी स्तुति कर रही थी।।४०६ ।।
पाडवार् मदुर गीतं देविमार मिन्नुप्पोनिन् । राडवाररंभ पार्गकरिव पोरिलय तोड़ ॥ मुतामेलंद बोस बुंदुभि योस पेंड.। नोडिया तबत्तिया पारिवव निरुव पोल्दिल॥४७॥
अर्थ-उन देवियों के सुन्दर वाद्य व गीत उस श्रीधर देव के कानों को बहुत सुन्दर लगे। इस प्रकार ये देवियां सुन्दर २ वाद्य और गीतों के साथ नृत्य करती थीं। कई देवियां उनकी प्रशंसा करती थी । कानों को मधुर सुनाई देने वाले बाजे प्रादि बज रहे थे । तब उस समय वहां के देव और देवियां कहने लगी कि हे देव ! प्राप उत्कृष्ट प्रायु तथा रूप संपत्ति आदि को प्राप्त कर इस देव लोक में रहने के समय तक इस संपत्ति मौर इन स्त्रियों का उपयोग करके यहां के मानन्द का अनुभव करें। पुनः वहां के सामान्य देवों ने कहा कि प्राप भिन्न २ स्वर्गों के भिन्न २ सुखों के प्रानंद का अनुभव करें। आप के द्वारा जो कार्य यहां होना है उस कार्य के लिये हम प्रार्थना करते हैं सो सुनो ॥४८॥
बेंडि वतिय उपर मायबु । मोडि वग्यग मुळ्ळळवं सेलम ।। मॅड. सोल्लि इरेजिय वानवर । निड, पिन सेयु नीविगळोदिनार ॥४८॥
अर्थ-हे देव ! प्राप प्रथम त्रिमंजी नाम की बावडी के जल में स्नान करें और प्रहन भगवान के दर्शन करें। पूजा, अर्चा, भक्ति, स्तुति प्रादि करें ।।४।।
मंजन सयत्तार् मदिपोन् मुग । तम् सोलारदु मुन्न पमरंदु नी॥ पंच कायं पनित्त पिरानशि। कंबलि सैवमर्व शिरप्पुनि ॥४८॥ .
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