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________________ मेरा मंदर पुराण शेवर शंगं इड्रिसेत्तं शांति ईनन्मं तीयं । कुवसल कार्याविड्र पक्कं लिंग नोन नद्रि शंड्रान् ॥ ४७६ ॥ अर्थ -- इस प्रकार वह गजराज उस व्रत को निरतिचार श्राचरण करते हुए तथा म से और २ बढाते हुए वैराग्य भावना में महान तत्पर हो गया और क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायों को त्याग कर शास्त्र में कहे हुए बारह भावनाओं का चितवन करते हुए दुश्चारित्र को त्याग दिया । मन में होने वाले हर्ष व विषाद को भी त्याग कर व्रत अत्यन्त उत्कर्ष परिणाम करने वाला हो गया अर्थात् कभी २ एक २ मास तक प्रश्न जल को भी ग्रहण नहीं करता था ।।४७६ ।। बारणं तिङ् विटू वट्रिय तुवलुं पुनं । 6 पारयाग पातं करुन तवं पथि पान्में | Jain Education International • कारण मिदुमेवान् पोर, कालंगळ् पलवु नो । नीरने पोडुं ग्रूप केशरी नदियं पुक्कान् ||४७७॥ [ २२३ अर्थ - इस प्रकार गजराज अपने व्रतों में तत्पर रहकर सदैव बारह भावनाभों के चितवन में लीन रहता था । उस वन में अन्य सभी हाथी जो चारा घास खाते थे उस खाए हुए सूखे घा व टुकडों को हो खा खाकर वह हाथी वन में गुजर करता था। इस प्रकार व्रत को निरतिचार रूप से पालन करने वाले भव्य जीव के समान उस व्रत को वह हाथी निर तिचार पालन करता था । व्रत का श्राचरण करते समय एक दिन वह गंजराज चतुर्दशी का उपवास करके दूसरे दिन रूपकेशरी नाम की नदी पर पानी पीने चला गया ||४७७।। उरेनु करिघ व मुरुतंग नोंबुमुद्रि । वरंनि पिळिंब वे पोल् ट्रीय कायताट्रायिम् ॥ करैयिने शां नीरुळ कैयिनं नीट कैमा । निरेयिनु करसन कालगळ, निडसिडं कुळिप्प निड्रान् ॥ ४७८ । अर्थ - वह उपवास किया हुआ हाथी धीरे २ नदी के पानी में उतरता है । वहां गहरा कीचड था । शरीर की शिथिलता के कारण उस हाथी के दोनों पांव कीचड में फंस गये और वह हाथी विह्वल हो गया । पानी पीकर जब वह हाथी कीचड में से पांव उठाकर ऊपर चलने लगा तो उसके पांव कीचड में फंस जाने के कारण वह वहीं खड़ा रह गया । ||४७६॥ | प्रक्कन तमैच्च नाग चमर मायवने बिट्ट । कुक्कुड वडिविर पोवाय् पिरंद वक्कु वदन् काना ॥ मिक्केळुम वनलुं कोपिसोड मेलेरि निद्रि । चिक्केन कब धोरत् कायमुं त्यागं शैवान् ॥४७६ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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