________________
२०८ ]
मेरु मंदर पुराण
पान करती हुई अत्यन्त तृप्त हुई । और पुनः नमस्कार करके कहने लगी कि हे प्रभो ! मैं कुमार पूर्णचन्द्र के विषय में कुछ पूछना चाहती हूँ। आप दया करके इसका उत्तर सुझे दीजिये । मेरे इस प्रश्न के पूछने में आपके धर्मध्यान में बाधा तथा अंतराय होने से जो कष्ट होगा उसकी मैं क्षमा चाहती हूं। आप थोडा सा विषय का प्रतिपादन करें। इस पर मुनिराज ने कहा कि पाप किस संबंध में क्या पूछना चाहती हैं कहिये! ।। ४४१।।४४२।।
इळंशिंग वेटै सूळं द इरु पुलि पोदंग पोर । कळं कंडु मुळंगुं यान कावल कुमरर सूळ्दार ॥ उळंकोंड वमै चरादि सूळ बंदूर कोळ्वट्ट ।
तिळन् तिंग ळागि पूर चंदिर निरुदिट्टाने ॥४४३॥ अर्थ-पुनः वह रामदत्ता प्रायिका कहने लगी कि हे गुरुवर ! पूर्णचन्द्र नाम का राजकुमार अपनी दैनिक धार्मिक क्रियाओं से निवृत्त होकर रत्न जडित मुकुट को मस्तक पर धारण करके राज्यसभा में राज्यगद्दी पर बैठ जाता है। उन पर लगा हुआ रत्नजडित धवल छत्र अत्यन्त शोभायमान होता है। वह पूर्णचन्द्र राजसिंहासन पर इस प्रकार बैठता है जैसे मेरु पर्वत की चोटी पर कोई पराक्रमी सिंह हो पाकर विराजमान हो गया हो ।४४३।।
कामत्तिरुविन मंजरियुं कमल तिरुवं कडलमिदु । पूमैतछंद विळंकोडियुं पुनमेन्म यिलु मनै यार्गळ ॥ वाम कुरुव शिलै कोलि मलर कन नंबु तेरिदुमनम् । काम कोमान् विल्लिगळ् पोर् कडिदार मन्नन् पुडसूळ्दाररा४४४।
अर्थ-राजा पूर्णचन्द्र के चारों ओर अनेक देशों के राजा महाराजा आकर बैठे थे उस समय वह ऐसा प्रतीत होता था मानों एक बबरी शेर के चारों ओर कई सिंहों ने घेरा डाल रखा हो तथा जैसे चन्द्रमा को चारों तरफ से कई नक्षत्रों ने घेर रखा हो। इसी प्रकार उस सभा में मंत्रीमंडल, प्रजाजन सभी बैठे हुए थे ।।४४४।।
पानिवर तरु तिर कोंडु पैबोना । लातिपि मनिन येपिद सेप्पेन ॥ वार कडं कामुलैयार मगचिर । पोर कडा यान यान पुरिटु सेल्नाळ् ॥४४५॥
अर्थ-राज्यसभा ऐसी शोभायमान दिख रही थी, मानो सौधर्म स्वर्ग के इन्द्र की सभा में इन्द्र, इन्द्राणियां; देव देवियां, अप्सरा. प्रादि २ ने सौधर्म कल्प के इन्द्र को चारों तरफ से घेर रखा हो। वह पूर्णचन्द्र रति, लक्ष्मी, धन, धान्य आदि २ से प्रत्यन्त शोभायमान हो रहे थे ।४४५॥
Jain Education Infernational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org