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________________ मेर मंदर पुराण [ १७९ क्रोध से मरकर वह सुमित्रा व्याघ्रणी हुई। जयंत मुनि घोर तपश्चरण कर के धरणेंद्र के वैभव को देखकर निदान बंध करके धरणेंद्र हुआ। मोह से भद्रमित्र का जीव रामदत्ता रानी के गर्भ में पाया। इस प्रकार संसार में प्रति मोह करने वाला जीव अगले भव में बंधु भाई पति पुत्र प्रादि होकर दीर्घ संसार में परिभ्रमरण करता है ।।३६८।। कन्निडे वेळुत्तामाम् पोय मुगत्तिडै परकक्काना । नुन्निड तोंड विम्मा कन्नगिल करत्त नोकि ।। पनिडे किडंद नीनसोल पवळ वाय पांडु वाग । मन्निड तोंड मैदर मदिपेट्र दिशय योत्तान् ॥३६॥ अर्थ-महारानी रामदत्ता देवी के गर्भ रहने के कारण उसका मुख कृश हो गया । पेट मोटा हो गया। स्तन काले हो गये। अत्यन्त मृदुभाषिणी हो गई। उनकी दंत पंक्ति दाडिम के दानों के समान तथा होठ लाल माणक के समान प्रकाशमान प्रतीत होने लगे। क्रमशः प्रानंद पूर्वक नव मास पूर्ण हो गये। तत्पश्चात् नौ महिने बाद उसने पुत्ररत्न को जन्म दिया। राजा सिंहसेन अपने पुत्र का चंद्रमा के समान मुख देखकर अत्यन्त संतुष्ट व प्रसन्न हुए । और उनका मुख अत्यंत प्रफुल्लित हो गया। "पुत्र रत्नं महारत्न"। इस कहावत के अनुसार राजा को महान प्रानंद हुआ ।।३६६।। वेयन तिरंड मेंडोन् मेल्लिय लोडुम् वेद । नाइरक्किरनन शेंडदिशे योडु वान योर ॥ पाइरु परवै ज्ञालं पैबोना लाति नायं । शीय चंदिरुनेन ट्रोमै दिसे दोरु पंकिनाने ॥३७०।। अर्थ-पुत्र के जन्म होते ही राजा तथा रामदत्तः देवी दोनों ही को अत्यन्त प्रानन्द हुआ। और पुत्र जन्म की खुशी में दीन,गरीब, दुखी याचकों को ऐच्छिक दान दिया। और शुभ मुहूर्त में विधि पूर्वक नाम संस्कार करके उस बालक का नाम सिंहचन्द्र रखा। अपने नगर में उसके नाम की घोषणा करा दी। ३७०।। मलविला तडतु निड़ मळिनं पोल वळरंदु नन्नार । कुलमेला मेलिय वांगुं कोडुजिलै पयंड. कुंडा ॥ कलयला कडंदु कामं कनिंदन कमल मोट्टिन् । मुलै नल्लार सेतिनार्गळ मुरुगुण्णं, वंडे वत्तान् ॥३७१॥ अर्थ-हमेशा जल से भरे तालाब में जिस प्रकार कमल खिले हुए हैं उसी प्रकार वह सिंहचन्द्र राजकुमार पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान प्रफुल्लित हो रहा था। उस समय राजा ने विचार किया कि यह बालक वृद्धि को प्राप्त कर रहा है प्रतः इसके. विद्याध्ययन का प्रबंध करना चाहिये । तत्पश्चात् उस कुमार को एक प्रोहित पंडित के पास शुभ मुहूर्त में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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