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________________ मेरु मंदर पुराण [ १७७ अर्थ-अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया और लोभ के कारण उस जंगल में वह सुमित्रा का जीव ब्याघ्री पर्याय को धारण किये हुए हमेशा उस जंगल में घूमती रहती थी। इधर वह भद्रमित्र श्रेष्ठी अनेक दीन दुखियों, याचक जनों को नित्य दान दिया करता था। एक दिन वह भद्रमित्र अपनी स्त्री के साथ घूमने के लिये उसी वन में गया ।।३६३॥ कारणं तानोंडिडिकरमत्तिन करमयाले । वारणिवि लंगुम कोंगे मंगम रोडौ बळ्ळल् ॥ तारणि सोलै कुंडम तन्नुदळे किरियुं पोदिन । वेरनिलिंगुं सिंदै गै निड्दनै कंडान् ॥३६४।। अर्थ-उस सघन वन में घूमते २ अनेक प्रकार के वृक्ष पर्वत प्रादि को देखा और आते समय उस व्याघ्री को भी वन में देखा । जब मनुष्य की प्रायु कर्म की समाप्ति का समय पा जाता है उस समय कोई निमित्त अवश्य मिल जाता है। विधि का ऐसा ही लेख है। उस समय को कोई टाल नहीं सकता। उनकी आयु की समाप्ति का समय मा ही गया हो ऐसा समझ कर उनको वह व्याघ्री दीख पडी ॥३६४।। कंडवत् पेयरमेल्ल कडियदोर् पसिनालु। डिस पवर निर्प वेळंब वेरत्त मोडि। विंडरि विळक्किनमेले मिट्टिल पायं बिट्टदे पोल् । तडिवर मोळिनान् मेर् ट्राय पुलि पायं व बड़े ॥३६५॥ अर्थ-उस व्याघ्री को देखकर वह भद्रमित्र प्रत्यंत भयभीत हो गया और इधर उधर भागने लगा तो पूर्वभव का वैर उस व्याघ्रो को स्मरण हो पाया। और वह व्याघ्री जो कई दिनों से भूखी थी । भूख से व्याकुल होकर प्रति शीघ्र ही जिस प्रकार दीपक पर पतंग उडकर पडता है, उसी प्रकार वह व्याघ्री अपने पूर्व भव के पुत्र भद्रमित्र पर जा झपटी और उसको मारकर खा डाला । ३६५।। वेबिया पसिइन् वाडि बिळु मुईर् किपकंडु । कोविया वंज नेजिर करुण योंडिडि सेत्त ।। तीबिया पिरंदु निड़, मगनयु तिड विद । पाविये पोल किल्लार करुणेयै पैइल्गै मं॥३६॥ अर्थ-भूख से व्याकुल हुई वह व्याघ्री जो पूर्वभव का अपने पेट का भवामित्र नाम का जो पुत्र था और उसने पूर्वजन्म के पुण्योदय से सभी कमाई की थी, उस कमाई में से वह दान माता को सहन न हो सका और वह माता सुमित्रा प्रातध्यान द्वारा भरकर व्याघ्री हुई और अपने पुत्र भद्रमित्र को ही भक्षण कर गई। इस कारण मगे के लिये उसने निचगति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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