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________________ १५४ ] मेरु मंदर पुराण afरवरु विलय कर, कन । निरैयवं किडंद वेंड्रान ॥ ३०२ ॥ अर्थ - इस बात को सुनकर राजा सिंहसेन ने रत्नों ने ढेर में अन्य रत्न व मुद्रिका आदि मिलाकर पुन: भद्रमित्र से कहा कि तुम मुद्रिका आदि इन में से चुन लो तब भद्रमित्र कहने लगा कि कि राजन् मेरे रत्न भी इन रत्नों में बहुत मिले हुए है ।। ३०२ ॥ fort मिक्क विम्मरिणयं निन, मरिण योडु कलक्कु । म तानुळनो वरियादु नीयुरंत्ताय् ॥ येनिला विले विम्मरिण तन्मयं पाकुं । कण मोडिन, कानेन कावल तुरंतान ॥ ३०३ ॥ अर्थ- - इस जगत में आपके अमूल्य रत्नों के साथ मेरे कम मूल्य के रत्नों को मिलाने वालों के समान और अज्ञानी कौन होगा ? कोई नहीं है, इसलिए उन अमूल्य रत्नों में मेरे अल्पमूल्य रत्नों का रखना अज्ञानोपन है । राजा कहने लगा कि है भद्रमित्र तुम्हारी ग्रांखों में कुछ भ्रम है, यह रत्न तुम्हारे ही हैं गौर करके देखो, घबरावो मत, एक बार और देख लो ||३०३ || Jain Education International - मत्तनल्लवन करुमत्तिन, वरुं पयन, टूरिंदु | सित्त वैत्तलार सैवदोर सोळिल वैय्यत्तिले ॥ वंत वेन्मरिण मरंदु वैगलु मळनेर । पित्तनेंडूनं येळेत्तवर पिळत्तदेन, पेरियोय् ॥३०४॥ अर्थ - इस बात को सुनकर वह आप ज्ञानी है, भली प्रकार जाने बिना आप सोच समझकर करता है । यदि मैं अपने कहना ठीक है । मैं अपने रत्नों की पहचान भूल नहीं सकता ॥ ३०४ ।। बग्गिक हाथ जोडकर कहने लगा कि हे राजन् ! कोई कार्य नहीं करते हैं। ज्ञानी प्रत्येक कार्य को रत्नों को भूल जाऊं तो लोगों द्वारा मुझे पागल इप्पर सुरंत सेप्पिलिट्टमा मारिये एल्लाम् । सेure परिसुनीकि सेऴुमरिण कैडर कोंडान् ॥ मै परी शरिदु तन्मं कैकोंडु पिरिदु विट्ट । श्रोप्पिर मत्तनाय मुनिये पोल वरणग निड्रान् ।। ३०५॥ अर्थ -- इस प्रकार कहकर उस रत्नराशि में मिले हुए अपने रत्नों को पहचान कर भद्रमित्र ने ले लिए और अन्य रत्नों को छोड़ दिये। जिस प्रकार एक प्रमत्तगुणस्थानवर्ती तपस्वी अपने सत्यतत्त्व को समझने के बाद अपने सत्स्वरूप ग्रात्म-स्वरूप को प्रर्थात् स्वपर के ज्ञान को समझकर जैसे जडतत्व को भिन्न जानता है, अपने निज स्वरूप में लीन रहता है उसी प्रकार भद्रमित्र श्रेष्ठी ने अन्य रत्नों को छोड दिया और अपने रत्न ले लिये ॥ ३०५ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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