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मेर मंदर पुराण
अर्थ-हे शिवभूति मंत्री ! आप यदि मुझसे साक्षी चाहते हो तो आप ही मेरे साक्षी हो । दूसरी यह बात है कि आपने यह कहा था कि यदि तुम्हें रत्न देना हो तो एकांत में लाकर देना । इस कारण मैंने एकांत में लाकर पेटी प्रापको दी थीं। ऐसी हालत में तुम्ही साक्षी हो और कोई साक्षी नहीं। तुम्हारी बुद्धि में कोई फेरफार दीखता है । काच और कंचन रत्न आदि यह सभी समय पर मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं। पाप का बाप लोभ ही है । इस काच और कंचन के लोभ के कारण ही बडे २ जीव नरक में जाते हैं। संसार में सबसे बलवान धन और रत्न हैं । आपकी बुद्धि पर भी रत्नों की पेटी माने पर कुछ फर्क पड गया है। ऐसा दीखता है ॥२५७॥
कनमदोंड्रिले कन पुदतिट्टळ । पिनमवागु मिव्वाळकैयै पेनुवान् ।। अनिगळामरी उस पुगुळं केड । मरिण कन्मेन् मनम् वैत्तदोर मायमे ॥२५८।।
अर्थ-एक ही क्षण में यह आत्मा इस शरीर को छोड़कर जाने वाली होने पर भी इस मोह के कारण बंध, मित्र, बांधव आदि की रक्षा करने के लिये प्रात्मा के अच्छे प्राभूषण अथवा जेवर के रूप में सम्यकदर्शनादि गुण तथा लौकिक गुणों का नाश करके रत्नों का इस प्रकार अपहरण करना यह भारी अज्ञानता है, विचार करें। आप सद्गुणी व श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार की भावना रखना आपके लिए उचित नहीं हैं ॥२५८।।
शैव नंडि शिदैत्तर तेरिनार । कैद वंजन शैदु पिरर मनै । मैय लान मगिळ्वार् किंद मन्मिशै । यैदिडा पळिइन्मै यरिइरो॥२५॥ पिरर् पोसुळ वैत्तल कोडल पिरर् तमक्कीदन माट्न् । मरमेन वेंड, सोन्ने वाय मोळि मरंदिट्टिरो॥ तिरमल दुइक्क वेंडाम् सेप्पु कोंडिरुप्प देडि। मुरै मुरै पित्तनाकि मुडिंद नीर मोगत्ताले ॥२६०॥
अर्थ-हे शिवभूति मंत्री! किसी वस्तु को लेकर गुप्त रूप से अपने पास रखना, अपहरण करना, दूसरों की वस्तु को लेकर वापस न करना ये सभी पाप के कारण हैं । ऐसा उपदेश आपने ही तो दिया था जिस दिन कि मैंने रत्नों की पेटी प्राप के पाप रखी थी । क्या आप अपने उस उपदेश को भूल गये हो ? रत्नों के मोह से आप मुझे ही उल्टा पागल बना रहे हो, क्योंकि शास्त्रों में यह भी कहा है कि
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