SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरु मंदर पुराण [ १३५ तोळ्द के शेंड मैच्चाने तुन्निनिन् । ट्रेळिलपर शिल विन् मोळि कूरिनान् ॥२५०।। अर्थ-उस भद्रमित्र ने सिंहपुरी नगरी में प्राकर एक महल में अपने बंधनों को ठहरा दिया और कुछ दिन पाराम करके अपने रत्नों को वापस लेने को उस सद्गुणी शिवभूति मंत्री के पास जाता है पार जाकर वहां अनेक प्रकार की स्तुति करता है ।।२५।। शेपमु पुगंळु मरि सिदैत्त । दोप्पिलाद पिरप्पै युडैत्तिडा ।। शेप्पिन मरिण मेन् मनं शिक्कुना। वोप्पिलान उरैप्पदर् कूकिनान् ।।२५१।। मायं शैद मरच्चप्पैनै यवन् । मायमिल्लवन् द्रनमरिण शेप्पिनै ।। मायं शैदु कोळक्कु मनात्तिना। मायनेशिल वायु से प्पिनात् ॥२५२॥ अर्थ-तब वह शिवभूति मंत्री भद्र मित्र से पहले के समान मृदुवचन न बोलकर दुष्परिणाम से बोलने लगा। उसके मन में कुटिलता की भावना जागृत हो गई और अनेक २ प्रकार से असभ्य वार्तालाप करना प्रारंभ कर दिया कि मायाचार व कपट करने वाला मनुष्य मायाचारी दुराचारी होता है ।। २५१ ।। २५२ ।।। एंगुनी युळे यावनी मट्र नी। एंगु पोवदेन सोलवेंदखें । वगमीदु वंदड्र, मरिण चेप्पु । तके तंदु पोंम् वारिणगनानेंड्रान् ॥२५३॥ अर्थ-पुनः वह मंत्री कहता है कि मैं तुझे नहीं जानता, तू कौन है, कहां से आया है, किस ग्राम में रहता है, कहां को जाना है ? तब आश्चर्य चकित होकर वह भमित्र कहने लगा कि हे मंत्री ! मैं कई दिनों के बाद आया हूं। रत्नों की पेटो मापके पास रखकर मैं अपने पद्मशंख नगर बंधु बांधवों को लेने चला गया था। माप पर मेरा पूर्ण विश्वास है और मेरा नाम भद्रमित्र है ।।२५३।। सेप्पन सेप्पिइट्ट देन सेप्पन । मोप्पिलाद मरिण चेप्पु वैत्तदु ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy