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मेर मंदर पुराण
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माद्रिड उईरै पट्रि विनै मोवलागि तुंब । मादयु शैदु गंद मनुवुमा निर्पयामे ॥३॥
अर्थ-पुद्गल, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण इनसे युक्त होते हुये पूरण और गलन सहित होने के कारण व्यवहार नय से संसार में वर्तनावाले संसारी जीवों में संबद्ध होकर ज्ञानावरणीय पादि पाठ कर्मों के कारण सुख दुःख को उत्पन्न कर कर्मस्कंध को उत्पन्न करनेवाले होते हैंकर्म स्कंध रूप होने के कारण होते हैं।
भावार्थ-स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि से युक्त यह पुद्गल राग द्वष मोह के पाश्रव से ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय, वेदनीय, अन्तराय, मोहनीय, नाम, गौत्र और प्रायु ऐसे पाठ कर्म रूप परिणत होता। उनके निमित्त से अनेक दुःखों को सहते हुये जीव संसार में परिभ्रमण करता है । सारांश यह है कि यह प्रात्मा शुभाशुभ भावों से उत्पन्न होने वाले पाठ कर्मों को बांधकर संसार में परिभ्रमण करता है ।।३।।
नुन्मयु नुन्मयु नल्ल नुन्मयु । नुन्माइर् परुमैयुं परमै नुन्मयुं । मेनर परमै युमिर परमै यु।
कण्णरु मनुविना रागुं गंध मे ॥४॥ अर्थ-स्कन्ध छह प्रकार के हैं। स्थूल-स्थूल, स्थूल, स्थूल-सूक्ष्म, सूक्ष्म-स्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्म-सूक्ष्म ।।२४॥
करमत्तिन् कोळन करम नोगमम् । पेरिय वा नोगमम् पोरिकोळावन । भोर पोरि पुलत्तन पलपुलत्तन । करुदिय वरुवगै कंद मागुमे ॥॥
अर्थ-छह प्रकार के स्कंधों का स्वरूप इस प्रकार है-जो छूट जाने पर फिर न मिलें उन्हें स्थूल-स्थूल स्कंध कहते हैं । जैसे पृथ्वी पत्थर प्रादि । जो टूट कर फिर मिल जाय उन्हें स्थूल स्कंध कहते हैं। जैसे दूध जल आदि । जो देखने में प्रावे, पकड़ने में न आवे उन्हें स्थूल-सूक्ष्म स्कंध कहते हैं । जैसे तम, छाया, धूप प्रादि । यह नेत्रेन्द्रिय के विषय होते हैं। रस गंध स्पर्श शब्द रूप चार इन्द्रियों के विषयों को सूक्ष्म-स्थूल स्कंध कहते हैं। जैसे गंव रस स्पर्श तथा शब्द परिणति स्कंध । कर्म वर्गणाओं को सूक्ष्म-सूक्ष्म स्कंध कहते हैं । इस प्रकार ये छह प्रकार के स्कंध सर्व लोक में भरे हुवे हैं ।।५॥
अरि रंडागि नाम वण, सुवैयुमंडाय । गिरि रंडाकू लागा नुन्मत्ता येळवैक्कयाम् ॥
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