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श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र संयम-यात्रा की पृच्छा) आपकी संयम-यात्रा (निबधि है ? यापनीय की पृच्छा) और आपका शरीर, मन तथा इन्द्रियाँ पीड़ा से रहित हैं ? (गुरु की ओर से 'एवं' कहने पर स्वापराधों की क्षमा याचना) हे क्षमाश्रमण ! (मैं) दिवससम्बन्धी अपने अपराध को खमाता हूँ, चरण-करणरूप आवश्यक क्रिया करने में जो भी विपरीत अनुष्ठान हुआ हो, उससे निवृत्त होता हूँ ! (विशेष स्पष्टीकरण) आप क्षमा-श्रमण की दिवससम्बन्धिनी तैतीस में से किसी भी आशातना के द्वारा (आशातना के प्रकार) जिस किसी भी मिथ्या-भाव से की हुई, दुष्ट मन से की हुई, दुष्ट वचन से की हुई, क्रोध से की हुई, मान से की हुई, माया से की हुई, शरीर की दुश्चेष्टाओं से की हुई, लोभ से की हुई, सब काल में की हुई सब प्रकार के मिथ्या-भावोंसे पूर्ण सब धर्मों को उल्लंघन करने वाली आशातना से। जो भी मैंने (दिवस में) अतिचार किया हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, विशेष निन्दा करता हूँ, आशातनाकारी अतीत आत्मा का पूर्ण रूप से परित्याग करता हूँ।
१ जहाँ दिवस-सम्बन्धी प्रतिक्रमण हो, वहाँ 'देवसिओ' जहाँ राचि
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