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सामायिक का स्वरुप
जो समोसव्वभूएसु
तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलि-भासियं ।।
-आचार्य भद्रबाह जो साधक त्रस और स्थावर-समग्र जीवों पर सम-भाव रखता है, उस की सामायिक, शुद्ध सामायिक है। ऐसा केवली' भगवान् ने कहा है ।
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