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सामायिक-सूत्र
जब तक मैं नियम से स्थित रह कर पर्युपासना करू, तब तक दो करण [करना, कराना, चाहिए।] और तीन योग से अर्थात् मन, वचन, और काय से (पापकर्म) न स्वयं करूँगा और न दूसरों से कराऊँगा। [जो पाप-कर्म पहले हो गए हैं, उनका] हे भगवान् ! प्रतिक्रमण करता है, आत्मसाक्षी से निन्दा करता हैं, गुरुदेव ! आप की साक्षी से गर्दा करता हूँ। अन्त में, मैं अपनी अन्तरात्मा को पाप-व्यापार से बोसराता हूँ अलग करता हूँ।
व्याख्या:
यह प्रतिज्ञा-सूत्र है। इसमें साधक सामयिक करने की प्रतिज्ञा करता है।
सामायिक एक प्रकार का आध्यात्मिक व्यायाम है। व्यायाम भले ही थीड़ी देर के लिए हो, दो घड़ी के लिए ही हो, परन्तु उसका प्रभाव और लाभ स्थायी होता है ।।
सामायिक में दो घड़ी बैठ कर आप अपना आदर्श स्थिर करते हैं । सामायिक बाह्यभाव से हट कर स्वभाव में रमण करने की कला है । सम-भाव की साधना ही सामायिक है।
प्रस्तुत पाठ में सामायिक का स्वरूप बताया गया है। जब तक जीवन में सच्ची सामायिक नहीं आती, तब तक जीवन पावन नहीं बन सकता । सामायिक की साधना ही सब से मुख्य साधना है ।
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