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मूल :
अर्थ :
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
आवस्सहि इच्छाकारेण संदिसह भगवं ! देवसिय पायच्छित्त-विसोहडू करेमि काउ
स्सग्गं ।
भन्ते ( आप इच्छा - पूर्वक आज्ञा दीजिए (जिससे मैं ) अवश्यकरणीय, दिवस- सम्बन्धी प्रायश्चित्त को विशुद्धि के लिए कायोत्सर्ग करू ।
: ५० :
ध्यान के विषय में मन का, वचन का, काय का जो कोई खोटा योग प्रवर्ताया हो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
: ५१ :
१. सामायिक २. चतुर्विंशति स्तव
३. वन्दना
४. प्रतिक्रमण
५. कायोत्सर्ग
६. प्रत्याख्यान
सुहाए, निस्सेसयाए, अणुगामियाए भविस्सति ।
मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण, अव्रत का प्रतिक्रमण, प्रमाद का प्रतिक्रमण, कषाय का प्रतिक्रमण और अशुभयोग का प्रतिक्रमण |
इन पाँच प्रतिक्रमणों में से कोई भी प्रतिक्रमण न किया हो, विधि पूर्वक उपयोग के साथ न किया हो, तो तस्स मिच्छा मि दुक् कडं ।
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