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श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
इस प्रकार चार गति, चौरासी लाख जीवयोनि के किसी भी जीव को हना हो, हनाया हो हनते को भला जाना हो, तो १८, २४, १२० बार तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
सब जीवों से मन, वचन और काय से क्षमा-याचना करता हूँ। सब जीव मुझे क्षमा करें।
:४८:
क्षमापना सूत्र मूल : खामेमि सव्वे जीवे,
सव्वे जीवा खमंतु मे। मिती मे सव्व-भूएसु,
वरं मझ न केाइ । एवमहं आलोइअ,
निदिय गरिहिअ दुगुछिउं सम्म तिविहेणं पडिक्कतो;
वन्दामि जि-चउव्वीसं । अर्थ : मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ, और के सब जीव
भी मुझे क्षमा करें। मेरी सब जीवों के साथ मित्रता है, किसी के साथ मेरा बैर-विरोध नहीं है।। इस प्रकार मैं सम्यक् आलोचना, निन्दा,. गर्दा और जुगुप्सा के द्वारा तीन योग से-मन से, वचन से एवं काय से-प्रतिक्रमण करके, पापों से निवृत्त हो कर, चौवीस तीर्थङ्करों को वन्दन करता हूँ।
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