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श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
इन अष्टादश पाप स्थानों से किसी भी पापस्थान का सेवन किया हो, कराया हो, करते को भला जाना हो, तो अनन्त सिद्ध केवली भगवान की साक्षी से तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
:४३ :
उपसंहार-सूत्र तस्स धम्मस्स, केवलो-परणतस्स, अब्भुट्टिओमि, आराहणाए । विरओमि, विराहणाए। तिविहेणं पडिक्कतो,
वन्दामि जिण चउव्वीस । अर्थ : केवलो भगवान द्वारा भाषित धर्म की आराधना में,
मैं स्थित हैं। विरधना से अलग हैं। तीन योगों से, मन से, वचन से, काय से, प्रतिक्रान्त होता हुआ, पापाचरण से पीछे की ओर हटता हुआ, स्व-स्वरूप में स्थित होता हुआ, मैं चौबीस तीर्थङ्करों
को वन्दन करता हूँ। व्याज्या:
प्रस्तुत पाठ 'उपसंहार-सूत्र' है, इसमें बताया गया है, कि मैं धर्म की आराधना में स्थिर हूँ और धर्म की विराधना से विरत हूँ। धर्म की विराधना से, मैं, मन से, वचन से, एवं काय से-तीन योग से प्रतिक्रान्त हो कर, दोषों से पीछे हटकर पूर्वगृहीत-संयम सम्बन्धी नियमों में स्थिर हो कर महान् उपकार करने वाले २४ तीर्थङ्करों को व-दन करता हूँ।
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