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अर्थ:
श्रावक प्रतिक्रमण -सूत्र
एयस्य दसमस्य देसावगा सियव्वयस्स समणोवासएणं पंच अइयोरा जाणियव्वान समायरियव्वा ।
तं जहा - आणवणप्पओगे - पेसवणप्पओगेसहाणुवाए, रूवाणुवाए, बहियापुग्गल पक्खेवे । जो मे देव सिओ अइयारो कओतस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
दशम देशावकाशिक व्रत है - दिन में प्रातः काल से लेकर पूर्वादि छह दिशाओं में जितनी भूमि का परिमाण (मर्यादा) किया, उसके अतिरिक्त अपनी इच्छा से स्वयं शरीर से जा कर, अथवा अन्य को भेज, कर, पाँच आश्रव के सेवन का प्रत्याख्यान (त्याग) करना ।
यावत् दिन-रात - पर्यन्त, दो करण तीन योग से, ( आश्रव - सेवन ) न करू, न कराऊँ, मन से, वचन से, काय से । अथवा
छह दिशाओं में जितना परिमाण किया, उस में भी जितने द्रव्यों का परिमाण किया, उसके अतिरिक्त उपभोग - परिभोग का प्रत्याख्यान (त्याग) करना ।
यावत् दिन-रात तक, एक करण तोन योग से, (हिंसा, असत्य आदि आश्रव सेवन ) न करू, मन से, वचन से, काय से ।
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