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________________ १२ श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र अपक्व'. ओषधि-भक्षणता : जो वस्तु पूर्ण पक्व नहीं हैं, और जिसे कच्ची भी नहीं कह सकते, ऐसी अधपकी चीज को खाना । दुष्पक्व ओषधिभक्षणता : ___ जो वस्तु पकी हुई तो है, परन्तु बहुत अधिक पक गई है, और पक कर विगड़ गई है, अथवा देर में पकने वाली ऐसी वस्तु को खाना । तुच्छ-ओषधिभक्षणता : जिसमें क्षुधा-निवारक भाग कम है, और व्यर्थ का भाग अधिक है, ऐसी चीज को खाना । जैसे-मूग आदि की कच्ची फली, जिससे पौष्टिक तत्व बहुत कम होता है। पन्द्रह कर्मादान व्याख्या: १. अंगार-कर्म : कोयले बना कर बेचना, उससे अपनी आजीविका चलाना। इस कार्य में षटकाय के जीवों की बहुत अधिक हिंसा होती है, ओर लाभ कम होता है । कोयले के लिए हरे-भरे वृक्ष काट डाले जाते हैं। १. जो वस्तु पूर्ण पक्व नहीं है,..........और जिसे कच्ची भी नहीं कह सकते, ऐसी अर्धपक्व चीज खाना........! -'गृहस्थ-धर्म' भाग ३, पृ० ४५ अपक्ब अर्थात् अल्प (थोड़ी पकी हुई वनस्पति का भक्षण करना । -पू० घासीलालजी कृत उपासकदशांग टीका पृ. ३०८ २. 'गृहस्थ-धर्म' भाग ३ पु० ४६ । चिरकाल से अग्नि की आँच द्वारा सीझने वाली तूम्वी, चमलेकी फली आदि का भक्षण करना। पूज्य घासीलालजी, उपासक"टो० पृ० २०९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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