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________________ 98 -कार्तिकेयानुप्रेक्षा पृष्ठ कर ३०० उत्तम मार्दव धर्मका स्वरूप २९३ निःशंकित आदि गुण किसके होते हैं ३१९ ,, आर्जव धर्मका २९४ । धर्मको जानना और जानकर भी। ,, शौच धर्मका , २९५ पालना कठिन है। ३२१ ,, सत्य धर्मका , २९६ स्त्रीपुत्रादिकी तरह यदि मनुष्य धर्मसे सत्यवचनके दस भेद और उनका स्वरूप २९६ प्रेम करे तो सुखप्राप्ति सुलभ है। , संयम धर्मका स्वरूप २९७ धर्मके विना लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती ३२२ संयमके दो भेद २९८ धर्मात्मा जीवका आचरण कैसा होता है। ,, उपेक्षासंयमका लक्षण धर्मका माहात्म्य ३२३ अपहृतसंयमके तीन भेद धर्मरहितकी निन्दा ३२६ पांच समितियोंका स्वरूप तपके बारह भेद ३२७ आठ शुद्धियोंका स्वरूप अनशन तपका स्वरूप ३२८ तपधर्मका स्वरूप ३०३ एकभक्त, चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम, त्यागधर्मका ,, ___ द्वादश आदि स्वरूप आकिश्चन्यधर्मका स्वरूप ३०४ उपवासके दिन आरम्भका निषेध ब्रह्मचर्यधर्मका , अवमौदर्य तपका स्वरूप शीलके अठारह हजार भेद कीर्ति आदिके लिये अवमौदर्य शूरका स्वरूप ३०६ • करनेका निषेध ३३२ दस धर्मोके कथनका उपसंहार वृत्तिपरिसंख्यान तपका स्वरूप हिंसामूलक आरम्भका निषेध ३०८ रसपरित्याग ३३४ जहां हिंसा है वहां धर्म नहीं है। विविक्तशय्यासन , दसधोका माहात्म्य साधुके योग्य वसतिका ,, ३३६ चार गाथाओंसे पुण्यकर्मकी वसतिकाके उद्गमादि दोषोंका विवेचन इच्छाका निषेध कायक्लेश तपका स्वरूप ३३९ निःशंकित गुणका कथन । ३१३ प्रायश्चित्त तपका स्वरूप निःकांक्षित गुणका ,, 'प्रायश्चित्त' का शब्दार्थ निर्विचिकित्साका , प्रायश्चित्तके दस भेदोंका कथन ३४१ अमूढदृष्टिका आलोचनाके दस दोष उपगूहुनका ३४२ स्थितिकरणका आलोचना करनेपर गुरुके द्वारा दिये वात्सल्यगुणका ३१८ ___गये प्रायश्चित्तको पालनेका विधान ३४४ प्रभावना गुण का , ३१९ विनयके पांच भेद ३४५ ३४० ,, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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